________________
३६८
भ्रम विध्वंनम् ।
सोप वयण कुल संघवाहि रो नाण विणय परिहीणा। अरिहन्त थेर गणहर मइ फिरहोंति बालिंणो ॥ ४ ॥
( सूय प्रज्ञप्ति २० पाहुड़ा जे. काई. श्रद्धा. ति. उत्थान, उत्साह कर्म वल. बीय. पुरुषकार पराक्रम करी. श्रभाजन सूत्रज्ञान ने देशी तो देन वाला में हानि होसी. ॥ ३ ॥ इण प्रकारे अभाजन ने ज्ञान देणवाला साध प्रवचन. कल. गण. संघ. सू. वाहिर जाणवा ज्ञान. विनय रहित. अरिहन्त तथा गणधरां री मर्यादा ना उल्लंघन हार जाणवा ॥४॥
___ अथ इहां कह्यो-ए सूत्र अभाजन ने सिखावे ते कुल. गण. संघ वाहिरे ज्ञानादिक रहित कह्यो। अरिहन्त. गणधर. स्थविर. नी मर्यादा नों लोपहार कह्यो। जो साधु अभाजन ने पिण न सिखावणो तो गृहस्थ तो प्रत्यक्ष पञ्च आश्रव नों सेवणहार अभाजन इज छ। तेहन सिखायां धर्म किम हुवे। इत्यादिक अनेक ठामे सूत्र भणवा री आज्ञा साधु न इज छ। तिवारे कोई कहे- जो सूत्र भणवारी आज्ञा श्रावकों ने नहीं तो जिम नन्दी तथा समवायांगे माधा नें “सुयपरिग्गहिया" कहा तिम हिज श्रावकां ने पिण 'सुयपग्ग्गिहिया" कह्या निण न्याय जो साधां ने सूत्र भणवो कल्पे तो श्रावकां ने किम न कल्पे विहूं ठिकाणे पाठ एक सरीखो छै, पहवी कुयुक्ति लगावी श्रावका ने सूत्र भणवो थापे नेहनों उत्तर--
जे नन्दी ममवायांगे साधां नें “सुयपरिग्गहिया" कह्या ते तो सूत्र श्रुत अनें अर्थ श्रत विहूंना ग्रहण करवा थकी कह्या छै। अने श्रावकां ने “सुयपरिग्गहिया" कह्या ते अर्थ धृत ना हिज ग्रहण करणहार माटे जाणवा। उवाई तथा मूय. गडांग आदि अनेक सूत्रां में श्रावका ने अर्थ ना जाण कह्या पिण सूत्र ना जाण किहां ही कह्या नथी। अने केई वाल अज्ञानी 'सुय परिग्गहिया" नो नाम लेई ने श्रावका ने सत्र भणवो थापे ते जिनागम ना अनभिज्ञ जाणवा। सुय शब्द नो अर्थ श्रुत छ पिण सूत्र न थी । डाहा हुवे तो विचारि जोई जो।
इति ह बोल सम्पूर्ण
तिवारे कोई कहे जे "सुय" शब्द नों अर्थ श्रुत छै सूत्र न थी तो श्रुत नाम तो ज्ञान नो छ। अनं तमे सूत्र श्रुत अने अर्थ श्रुत ए बे भेद करो छो ते किण सूत्र ना