________________
वैयावृत्ति-अधिकारः।
२७१
साधु ना कांटा आदिक काढ़े. कोई मर्दन पीठी स्नान करावे. कोई विलेपन तथा धूपे करी सुगन्ध करे । तेहनें साधु मन करी अनुमोदे नहीं। जे साधु ना गूमड़ा मर्श आदिक छेद्यां धर्म कहे. तो या सर्व बोलां में धर्म कहिणो। अनें यां बोला में धर्म नहीं तो गूमड़ा अर्श आदिक छेद्या में पिण धर्म नहीं। इणन्याय साधुरी अर्श छेद्यां क्रिया कही ते पापरी क्रिया छै पिण पुण्य री क्रिया नहीं। विवेक लोचने करी विचारि जोइजो। तथा केतला एक अज्ञानी "किरिया कजई" ए पाठ नो अर्थ ऊधो करे ? ते कहे--अर्श छेदे ते वैद्य क्रिया "कजइ' कहिता कीधी, वैद्य क्रिया कीधी. ते कार्य क्रीधो अनें साधु क्रिया न कीधी, इम विपरीत अर्थ करे छ। ते एकान्त मृषावादी छ। ए वैद्य क्रिया कीधी ए तो प्रत्यक्ष दीसे छ। ए कार्य करण रूप क्रिया नों तो प्रश्न पूछयो नहीं, कर्म बन्धन रूप क्रिया नों प्रश्न पूछयो छै । "कजइ' कहितां कीधी इम ऊँधो अर्थ करी भ्रम पाडे तेहनों उत्तर-भगवती श. ७ उ०१ जे साधु ईर्याइं चाले तेहने स्यूं "इरिया वहिया किरिया फजइ. संपराइया किरिया कजइ." इहां पिण इरिया वहिया किरिया कजइ कहितां इरियावहिया क्रिया हुवे के संपराय क्रिया. हुवे। इम. "कजइ” पाठ रो अर्थ हुवे इम कियो छै। "कजइ" कहितां भवति । तथा भगवती श०.८ उ०६ साधु ने निर्दोष देवे तेहने "किं कजति” कहितां स्यूं फल होवे इम अर्थ टीका में कियो छै
___ "कज्जति-किं फलं भवति" यहां टीका में पिण कजति रो अर्थ भवति कियो छै। तथा भगवती श० १६ उ० २ कह्यो “जीवाणं भंते चेय कड़ा कमा कज्जति" अय काडा कम्मा कन्जंति इहां पूछ्यो-चेतन रा कीधा का "कज्जति" कहिली मुझे के अवेतन राकीधा कर्म हवे इहाँ पिण टीका में कजति जहितां भवति एनो पई कियो छै। इत्यादिक अनेक लाभे “का” कहितां हुवे म अर्थ कियो। लिहा अत्रों छेदे लिहां पिण "किरिया कजइ" ते क्रिया हुवे इन अर्थ छै। तथा साना ३ फलोजे शिष्य देवलोके गयो गुरां ने दुकाल थी सुकाल में मेले तथा अन्धी सो पत्तो में