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श्रम विध्वंसमन् ।
अथ अठे पिण शीतल आहार लेणो कह्यो। वली "दोसीण" कहितां बासी अन्नादिक बावण कहिता विमष्ट कह्यो अत्यन्त अमनोज्ञ विणठो रस एहवो आहार भोगवी चारित्रया में द्वेष न आणवो कह्यो। ते माटे ठण्डा आहार में विणस्यां पुद्गल कहीजे। पिण जीव न कहीजे। जे किणहिक काल में ठण्डो आहार नीलण फूलण सहित देखे ते तो लेवो नहीं। तथा उन्हाला में १२ मुहर्त्त नी रात्रि अर्ने १८ मुहूर्त :नों दिन हुवे जो सन्ध्या नी कीधी रोटी प्रभाते न लेवे बासी में जीव श्रद्ध ते माटे। तो तिण में बीचमें मुहूर्त १२ बीत्यां जीव श्रद्ध तो जे प्रभात री कीधी रोटी ते आथण रा किम लेवी। तिण बीच में तो १७-१८ मुहूर्त बीत्यां तिण में जीव उपना क्यूं न श्रद्ध। अनें रात्रि में जीव उपजे दिन में जीव न उपजे, एडवो तो सूत्र में चाल्यो नहीं। अनें जे प्रभात री कीधी रोटी में माथण रा जोव श्रद्वे न कहे तो सन्ध्या नी कीधी रोटी में पिण प्रभाते जीव न कहिणा। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । ।
इति ४ बोल सम्पूर्ण।
इति शीतल-अाहाराऽधिकारः।