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अथ सूत्रपठनाऽधिकारः।
केतला एक कहे-स्थ सूत्र भजे तेहनी जिन आज्ञा छै। ते सूत्र मा अजाग छै अनें भगवन्त नी आज्ञा तो साधु नें इज छै। पिण सूत्र भगवा री गृहस्थ ने आज्ञा दीधी न थी। जे प्रश्न व्याकरण अ० ७ कयो ते पाठ लिखिये छै।
महारिसीणय समयप दिसणं देविंद नरिंद भायियस्थ ।
( प्रश्न व्याकरण अ०७)
म. महर्षि उत्तम साधु तेहने स० संयम भणिये सिद्धान्त तेगो करी. प. दोधी श्री चीतरागे दोधा सिद्धान्त साधु हीज भणी सत्य वचन जाणे भाषे एवं अक्षरे इम जाणिये. श्री वीतराग नी आज्ञाइ सिद्धान्त भणिवा. साधु होज ने छे. जीजा गृहन्थ में दोधां इम न करो। ते भणी वली गीतार्थ कहे. ते प्रमाण दे. देव सौधर्म इन्द्रादि न० नरेन्द्र राजादिक तेहने. भा० भाष्या. प० परूप्या. अर्थ जेहना एतावता नरेन्द्र देवेन्द्रादिक सिद्धान्तार्थ सांभली सत्य वचन जाणे.
अथ इहां कह्यो–उत्तम महर्षि साधु ने इज सूत्र भगवा री आज्ञा दीधी । ते साधु सिद्धान्त भणी ने सत्य वचन जाणे भाषे। अने देवेन्द्र नरेन्द्रादिक ने भाष्या अर्थ ते सांभली सत्य वचन जाणे । ए तो प्रत्यक्ष साधु ने इज सूत्र भणवा री आज्ञा कही। पिण गृहस्थ ने सूत्र भणवा री आज्ञा नहीं। ते माटे श्रावक सूत्र मणे ते आप रे छांदे पिण जिन आज्ञा नहीं। हाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति १ बोल सम्पूर्ण।