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सूत्रपठनाऽधिकारः।
सूत्र भणवो कल्पे। अने ३ वर्ष दीक्षा लियां पहिला तो साधु ने पिण निशोथ सूत्र भणवो न कल्पे। अर्ने ३ वर्ष पहिलां साधु निशीथ सूत्र भणे तेहनी जिन आज्ञा नहीं। तो गृहस्थ सूत्र भणे तेहनी आज्ञा किम देवे । जे ३ वर्षा पहिला साधु सूत्र , भणे ते पिण आज्ञा बाहिरे छै तो जे गृहस्थ सूत्र भणे ते तो प्रत्यक्ष बाहिरे छै। जे श्रावक निशीथ आदि दे सूत्र भणे ते जिन आज्ञा में छै तो जे साधु ने ३ वर्षा पहिला निशीथ भणवा री आज्ञा क्यूं न दीधी। अनें साधु ने पिण ३ वर्ष पहिला आज्ञा न देवे तो श्रावक सूत्र भणे तेहने आज्ञा किम देवे। ए तो प्रत्यक्ष श्रावक कालिक उत्कालिक सूत्र भणे ते आज्ञा वाहिरे छै। पोता ने छांदे भणे:छै तेहमें धर्म नहीं। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति २ बोल सम्पूर्ण।
तथा निशीथ उ० १६ कह्यो-ते पाठ लिखिये छ।
जे भिक्खू अण उत्थियंवा गारत्थियं वा वायतिवायं तं वा साइजइ. ॥ २७॥
(निशीथ उ० १६)
जे जे कोई साधु साध्वी. अ. अन्यतीर्थी ने. गा० गृहस्थ ने. वा० वोचणी दे. वा. वाचणी देता ने अनुमोदे तौ पूर्ववत् प्रायश्चित्त कह्यो.
अथ इहां कह्यो-अन्यतीर्थी ने तथा गृहस्थ में साधु वाचणी देवे तथा वाचणी देता ने अनुमोदे तो प्रायश्चित्त आवे। ते माटे साधु वाचणी देवे नहीं वाचणी देता ने अनुमोदे नही तो गृहस्थ सूत्र भणे तेहनें धर्म किम हुये । जे श्रावक ने सूत्र नी वाचणी देता ने साधु अनुमोदना करे तो पिण चौमासी.दण्ड आवे तो