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संवराऽधिकारः।
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तिण में चारित्र ते सम्बर छै। तेहनें पिण जीव गुण प्रमाण कहिई। अनें चारित्र में जीव गुण प्रमाण कहे पिण जीव न कहे तो तिण रे लेखे ज्ञान दर्शन में पिण जीव गुण प्रमाण कहिणा। पिण जीव न कहिणा। अने ज्ञान. दर्शन. ने' जीव कहे तो चारित्र ने पिण जीव कहिणो। तथा वर्णादिक ने अजीव गुण प्रमाण कह्या, तेहनें अजीव कहीजे। तो ज्ञान, दर्शन. चारित्र. ने जीव गुण प्रमाण कह्या, तेहने पिण जीव कहिए। ए तो पाधरो न्याय छै। तथा चारित्र. गुणप्रमाण ग भेद कह्या, तिहां पांच चारित्र रा नाम कही पछे कह्यो। "सेतं चरित गुणप्पमाणे. से तं जीव गुणप्पमाणे.” इम कह्यो ते माटे पांचू इ चारित्र जीव छै। ते चारित्र व्रत संवर छै। तथा ठाणाङ्ग ठा० १० कह्यो--"दसविहे जीव परिणाम प० त० गइ परिणामे. इन्द्रिय परिणामे. कसाय परिणामे. लेस परिणागे. जोग परिणामे. उवओग परिणामे, णाण परिणामे, देसण परिणामे, चरित्त परिणामे. वेय परिणामे.” इहां जीव परिणामी रा १० भेदां में ज्ञान दर्शन ने जीव परिणामी कह्या ते जीव छै। तिम चारित्र ने पिण जीव परिणामी कह्यो ते चारित्र पिण जीव छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ३ बोल सम्पूर्ण ।
सथा भगवती श० १ उ० ६ संवर ने आत्मा कही। ते पाठ लिखिये छ ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावचिज कालासवेसिय पुत्तं णाम अनगारे, जेणेव थेरा भगवन्तो तेणेव उवागच्छइ २ ता थेरं भगवं एवं वयासी थेरा सामाइयं ण याणंति थेरा सामाइयरस अटुं ण याणंति, थेरा पञ्चक्वाणं ण याणंति. धेरा पच्चक्खाणस्स अटुंण थाणंति. थेरा संयम ण याति. थेरा संजमस्स अटुं ण याणंति. थेरा संवरं ण याति प्रेस