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भ्रम विध्वंसनम्।
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अथ अठे कह्यो-साध्वी पाणी में डूबती ने साधु बाहिरे काढे तो आज्ञा उल्लंबे नहीं। जे पाणो में डूबती साध्वी ने पिण साधु बाहिरे काढे तेहमें एक नो पाणी ना जीव मरे. बीजो साध्वी रो पिण :संघटो, ए विहूं में जिन आज्ञा छै ते माटे तिण में पाप नहीं। ए तिम नदी उतरे तिहां जीव री घात छै, पिप जिन आज्ञा छै ते माटे पाप नहीं। अने जे नदी में पाप कहे तिण रे लेखे नदी में डूबती साध्वी नें पाणी माहि थी बाहिरे काढे तिण में पिण पाप कहिणो। अनं साध्वी पाणो माहि:शी बाहिरे काढ्यां पाप नहीं तो नदी उतसां पिण पाप नहीं छ। अने पाणी माहि थी साध्वी ने बाहिरे काढे अनें नदी उतरे. ए बिहूं ठिकाने जीव नी घात छै, अनें बिहूं ठिकाणे जिम आज्ञा छै। ते माटे बिहूं ठिकाणे पाप नहीं। डाहा हुवे तो विचारि-जोइजो ।
इति ५ बोल सम्पूर्ण।
तथा वली बृहत्कल्प:उ० १ कह्यो ते पाठ लिखिये छ ।
को कप्पइ निग्गंथस्स एगणियस्स राअोवा विधाले वा वहिया विधार भूमिं वा विहार भूमिं वा निकनमित्तएका पविसित्तए वा कप्पइ से अप्पविश्यरून वा अप्प तईयरस वा राओवा वियाले वा वहिया वियाद भूमि वा विहार भूमिं या निक्खमित्तए वा। पविसित्तए वा ॥ ४७॥
(वृहत्कल्प उ०१)
नो न कल्प. नि० निरन्थ साधु ने. ए० एकलो उठवो जायका. रा० रात्रि ने विषे. व० वाहिर. वि० स्थण्डिल भूमिका ने विषे. वि० स्वाध्याय भूमिका ने विषे नि० स्थानक थी वाहर निकलवो स्वाध्याय प्रमुख करवा. प० पेसवो. क० कल्पे से ते. साधु ने प्र० पोता सहित वीजो. अ० पोला सहित तीजो. रा. रात्रि ने विपे. वि० सन्ध्या ने विधे..