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भ्रम विध्वंसनम्।
नहीं तिम नदी रा कार्य रो प्रायश्चित्त नहीं। ए तो भगवान् कह्यो ते रीति उतरणी न आयो हुवे ते खामी रोप्रायश्चित्त छै। आगे अनन्ता साधु नदी उतरतां मोक्ष गया छै। जो पाप लागे तो मोक्ष किम जाय। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ३ बोलसंपूर्ण ।
वली कोई कहे-जिहां जीव री घात छै तिहां जिन आना नहीं ते मृषा. वादी छै। ए तो. प्रत्यक्ष नदी में जीव घात छै, तिहां भगवन्त आज्ञा दीधी छै। ते पाठ लिखिये छ।
से भिक्खू वा (२) गामा णगामं दूइजमारणे अंतरा से जंघा संतारिमे उदए सिया से पुवामेव से सीलोबरियं कायं पादेय पमज्जेजा से पुवामेव पसज्जेता एगं पापं जले किचा. एगं पायं थले किया तो संजया मेव जंघा संतारिसे उदए आहारियं रियेजा ॥६॥ से भिक्खू बा ( २ ) जंघा संतारिने उदगे आहारियं रीयमाणे गो हत्थेग वा इत्थं, पादेण वापादं, काएण वा कायं, आसाएजा से अण्णासादए अणासादमारणे. तो संजया मेव जंघा संतारिने उदए आहारियं रियेजा ॥ १०॥
। प्राचाराज श्र० २०३ उ०२
से० ते. भि० साधु, साध्वी. ग्रा० ग्रामानुग्राम प्रते. दु० विहार करतां थकां इमाणे वि० विचाले. जं० जङ्घा सन्तारिम. उ० पाणी हैं. से० साधु. प. पहिला. म. मस्तक का शरीर. पा० पग लगे शरीर. ने. पु० पहिला. ५० प्रमार्जी ने. जा० यावत. ए० एक पग जले करी. ५० एक पग स्थले करो. एतावता चालतां जिम पाणी दुहलाई महीं तिम चालवो. त० तिवारे पर.सं. अपणा सहित सं० अंघा सन्तारिम. उ० उश्क में विषे. श्री सगन्नाथे जिम ईयां कही