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भ्रम विध्वंसनम्।
अथ इहां विशेष. अविशेष. ए बे नाम कह्या। तिण में अविशेष थी तो मनुष्य. विशेष थी. सम्मूर्छिम. गर्भज। अनें अविशेष थी तो सम्मूर्छिम मनुष्य अने विशेष थी पर्याप्तो अपर्याप्तो कह्यो । इहां सम्पूर्छिन मनुष्य ने पर्याप्तो अपर्याप्तो कह्यो। ते केतलीक पर्याय बंधी ते पर्याय आश्री पर्याप्तो कह्यो। अने सम्पूर्ण न बंधी ते न्याय अपर्याप्तो कह्यो। सम्मूर्छिम मनुष्य ने पर्याप्तो कह्यो। पिण पर्याप्ता में जीव ग भेद ७ पावै। ते माहिलो भेद न थी। जे देवता ने असन्नी कह्यां माटे असन्नी गे जीव रो भेद कहे तो तिणरे लेखे सम्मूर्छिम मनुष्य ने पिण पर्याप्तो कह्यां मारे पर्याप्ता रो भेद कहिणो अनें सम्मूर्छिम मनुष्य में पर्याप्ता रो भेद नथी कहे, तो देवता में पिण असन्नी रो भेद न कहिणो। तथा जीवाभिगमे देवता, नारकी ने असंघयणी कह्या। अने पन्नवणा में कह्यो देवता केहवा छै। "दिव्येणं संघयणे णं. दिव्येणं संठाणेणं" इहां देवता में दिव्य प्रधान संघयण, जिसा पुद्गलां ने संघयण कह्या। पिण ६ संघयण माहिला संघयण न कहिवा। तिम असन्ती मरी देवता अने नारको थाय ते अन्तम हित ताई असन्नी सरीखा छै विभङ्ग अज्ञान रहित ने माटे असन्नी सरीखा ने असन्नी कह्या। पिण असन्नी रो जीव भेद न कहियो। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ५ बोल सम्पूर्ण ।
तथा भगवती श० १३ उ० २ असुर कुमार में उपजे तिण समये देवता में बे वेद स्त्री वेद. पुरुष वेद. कह्या। ते पाठ लिखिये छै।
असुर कुमारा वासेसु एग समएणं केवइया असुरकुमारा उववज्जंति केवइया तेउ लेस्सा उववज्जंति केवइया कण्ह पक्खिया उवकन्जंति एवं जहा रयण प्पभाए तहेव पुच्छा तहेव वागरगां णवरं दोहिं वेदेहिं उक्वज्जति, णपुंसगवेदगा ण उववनंति सेसं तं चेव ।
( भगवती श०१३ उ००)