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जीवभेदाऽधिकारः ।
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० असुर कुमार ना आवास मांहि. ए० एक समय में के कतला. ० असुर कुमार ० उपजे है के ० केतला. ते० तेउ लेस्सावन्त उ० उपजे है के केतला क= कृष्ण पक्षिया उ० उपजे है. ए० इम. २० रत्नप्रभो आश्री पृच्छा त तथैव अठे जाणवा एतलो विशेष वे०
वे वेदे उपजे स्त्री वेदे पुरुष वेदे न० नपुंसक वेदे ० न उपजे.
अथ हां कह्यो -असुर कुमार में उत्पत्ति समय वे वेद पावे । पिण नपुंसक वेद न पावे । अनें देवता में असंज्ञी रो अपर्याप्तो ११ मो भेद कह्यो । तो ११
भेद तो नपुंसक वेदी छै । ते माटे तिण रे लेखे देवता में नपुंसक वेद पिण कहिणो 1 जे देवता में नपुंसक वेद न कहे तो ११ मो भेद पिण न कहिणो । इहां सूत्र में चौड़े कह्यो । जे उत्पत्ति समय पिण नपुंसक नहीं ते माटे अपर्याप्ता में ११ मोभेद न थी । अनें जे उत्पत्ति समय थी आगे आखा भव में देवता में बे वेद कला छै । ते पाठ लिखिये छै
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पणत्तासु तहेव एवं पुरिस वेदगाव.
वरं संखेज्जगा इत्थी वेदगा पणत्तापुंसग वेदगाणस्थि ।
( भगवती शः १३ उ० २ १
पपन्नत्रणा सूत्र ने विषे कह्यो त तिमज जाणवो णः एतलो विशेष सं० संख्याता इ० स्त्री वेदियr for कह्या. ए० इम पुरुष बेदिया पिया संख्याता कह्या to नपुंसक दिया
न थी.
अठे असुरकुमार में बीजा समय थी लेई ने आखा भव में बे वेद का | पिण नपुंसक वेद न पावे। तो जे नपुंसक रो ११ मो भेद देवता में किम पावे । जो देवता में ३ जीव रा भेद कहे तो तिण रे लेखे वेद पिण ३ कहिणा । अनें जे वेद २ कहे नपुंसक वेद न कहे तो जीव रा भेद पिण दोय कहिणा । ११ मो भेद न कहिणो । तथा ५६३ जीव रा भेद कहे तिण में पिण ७ नारकी रा १४ भेद कहे छै । जे पहिली नारकी में जीव रा भेद ३ कहे तो तिण रे लेखे ७ नारकी रा १५ भेद कहिणा । वली १० भवन पति रा भेद २० कहे । अनें जे भवनपति में ३ भेद कहे तिr रे लेखे १० भवनपति रा २० भेद कहिणा । वासठिया में तो नारकी