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आश्रवाऽधिकारः।
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इहां तो सम्यक्त्व. मिथयात्व. में चौड़े जीव कह्या छै ते माटे मिथयात्व आश्रव जीव छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ३ बोल सम्पूर्ण।
तथा मिथयात्व.आश्रव किण में कही जे ते मिथयात्व नों लक्षण ठाणाङ्ग ठा. १० में कह्यो छै। ते पाठ लिखिये छै।
दस विहे मिच्छत्ते प० तं० अधम्मे धम्म सन्ना धम्मे अधम्म सन्ना उम्मग्गे मग्गसन्ना मग्गे उम्मग्ग सन्ना अजीवेसु जीव सन्ना जीवेसु अजीव सन्ना असाहुसु साहु सन्ना साहुसु असाहु सन्ना अमुत्तेसु मुत्त सन्ना मुत्तेसु अमुत्त सन्ना ।
(ठाणाङ्ग ठा०१०)
द० दश प्रकारे मिथ्यात्व. प० परूया. तं० ते कहे छै. अधर्म ने विषे धर्म नो संज्ञा. ध० धर्म में विषै अधर्म नी संज्ञा. ऊ. उन्मार्ग (खोटो मार्ग ) ने विषे मार्ग ( श्रेष्ठ मार्ग) नी संज्ञा. म० मार्ग में विषे उन्मार्ग नी संज्ञा. अ० अजीव ने विषे जीव नी संज्ञा. जी० जीव में विषे अजीव नी संज्ञा. अ० असाधु ने विषे साधु नी संज्ञा. सा० साधु में विषे असाधु नी संज्ञा. मु० मुक्त ने विषे अमुक्त नी संज्ञा. अ० अमुक्त ने विषे मुक्त नी संज्ञा. ते मिथ्यात्व.
अथ इहां दश प्रकार मिथयात्व कह्यो-तिहां धर्म ने अधर्म श्रद्धे तो मिथयात्व विपरीत बुद्धि तेहनें मिथयात्व कह्यो। इम दसूइ बोल ऊधा श्रद्धे ते ऊधी श्रद्धारूप व्यापार जीवनों छै. ते माटे ऊधो श्रद्ध ते मिथयात्व नों लक्षण कह्यो। ते मिथयात्व आश्रव जीव छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ४ बोल सम्पूर्ण।