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भ्रम विध्वंसनम् ।
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यथा भगवती श० १७ उ० २ कह्यो ते पाठ लिखिये छै।
एवं खलु पाणातिवाते जाव मिच्छा दंसण सल्ले वट्टमाणे सच्चेव जीवे. सच्चेव जीवाया.
( भगवती श० १७ उ०२)
ए० एम ख. निश्चय. पा० प्राणातिपात ने विषे. जा० यावत. मिथ्या दर्शन शल्य ने विपे. व० वर्त्ततां थकां. स० तेहज. वे निश्चय. जी. जीव. स० ते हीज जीवात्मा.
अथ इहां जे प्राणातिपातादिक १८ पाप में वर्ते ते हीज जीव अने ते होज जीवात्मा कही जे तो १८ पाप में वत्त ते हीज आश्रव छै। मिथया दर्शन में वर्ते ते मिथयात्व आश्रव छै। अने जे अनेरा पाप में वर्ते ते अनेरा आश्रव छै। जे प्राणातिपात. मृषावाद. अदत्तादान. मैथुन. परिग्रह. में वर्ते ते अशुभ योग आश्रय छै। ए पिण जीव छै । क्रोध. मान. माया. लोभ. में वत्तें ते कषाय आश्रय छै. ते पिण जीव छै। इहां भाव कषाय. भाव योग. ते तो जीव छै। द्रव्य कषाय. द्रव्य योग. ते तो पुद्गल छै। कषाय ने अनें योग में आश्रव कह्या। ते भाव कषाय भाव योग आश्री कह्या, पिण द्रव्य कषाय द्रव्य योग ने आश्रव न कही जे! डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ५ बोल सम्पूर्ण।
तिवारे कोई कहे--कषाय योग ने अरुपी तथा जीव किहां कह्यो छै, तथा भावे योग किहां कह्या छै। इम कहे तेहनों उत्तर–जे ठाणाङ्ग ठा० १० में जीव परिणामी रा तथा अजीव परिणामी रा दश दश भेद कह्या छै ते पाठ लिखिये छ।
दस विहे जीव परिणामे प० तं० गइ परिणामे इंदिय परिणामे. कसाय परिणामे. लेस्सा परिणामे. जोग परिणामे.