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অথিৰাঘিাষ।
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सम्बर में जीव कहे तो आश्रव ने पिण जीव कहिणो। डाहा हुवे तो विचरि जोइजो । ..
इति १३ बोल सम्पूर्गा ।
अथ आश्रव तो कर्मा ने ग्रहे--अने सम्बर कर्मा ने रोके कम आवा रा वारणा ते तो आश्रव छै. ते वारणा रू'धे ते संवर ॥ बेह' जीव छै। देश थी उनलो जीव निर्जरा ते पिण जीव छै। सर्व थकी उजलो जीव मोक्ष ते पिण जीव छै। पुण्य शुभ कर्म, पाप-अशुभ कर्म बंध ते शुभाशुभ कर्म कर्म, ने पुद्गल छै । ते अजीव छै । एहवो न्याय ठाणाङ्ग ठा० ६ बड़ा ठव्या में कहा । ते पाठ: लिखिये छ ।
नवसभावा पयत्था. प० तं० जीवा. अजीवा. पुन्न. पाव. आस्सवो. संवरो. निजरा. बंधो. मोकावा.
ठाणाङ्गया।
न० नव सदभाव परमार्थक पिण अपरमार्थक नहीं पदार्थ वस्तु तिहां जो सुख. दुःख. रो ज्ञान. उपयोग लक्षण ते जीव, अजीव तेहथी विपरीत पुः पुण्य शुभ प्रकृति रूप कर्म ते पुण्य. पा० तेहथी विपरीत कर्म ते पाप. प्रा. शुभाशुभ कम ग्रह ते अाश्रव. श्रावता नों निरोध ते सम्बर. ते गुप्तयादिके करी ने, निर्जरा ते विपाक थको अथवा तप करी न कम नों देश थकी खपाविवं प्राश्रये ग्रह्या कर्म नूं अात्मा सङ्घाती योग भलवो ते बंध मोः सकल कर्म ना क्षय थकी जीव ना पोता ना स्वरूप में वि रहिव ते मोक्ष जीवाजीव व्यतिर के पुराय पापादिक न हुई पुण्य पाप ए बेहूं कर्म छ. बंध ते पाप पुण्य नों रूप छै. अनं कम ते पुल नो परिणाम छै. पुद्गल ते अजोव है। आश्रय ते मिथ्या दर्शनादि जीव ना परिणाम छै. तं प्रात्मा न पुद्गल में विरह नो करणहार. आश्रव निरोध रूप ते सम्बर, ते देश थकी सर्व थकी प्रात्मा ना परिणाम निवृत्ति रूप ते निरा. ते जीव थकी कर्म झाटको उ जुदो करवं. पोता नो शक्ति तं मोक्ष. ते समस्त कर्म रहित. आत्मा ते भणी जीवाजीव पदार्थ ते सद्भाव कहिइ. "हज भणी इहां पूर्व कहयं जे लोक माहि छै. ते सर्व विहुं प्रकारे "संजहा जीवाचेव अजीवाचेव" इहां समचे विहूं पदार्थ कह्या, ते इहां विशेष थको. नव प्रकारे करी देखाड्या