________________
आश्रवाऽधिकारः ।
किं तं नो आगमतो भावाए. नो आगमतो भावाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा पसत्ये. अप्पसत्थे से किं तं पसत्थे पसत्थे तिविहे पत्ते तं जहा गाणाए. दंसणाए चरित्ताए. से तं पसत्थे से किं तं अपत्ये अपत्ये चव्विहे पत्ते, तं जहा कोहाए मारणाए मायाए लोभाए से तं अप्पसत्थे । सं तं नो आगमतो भावाए. से तं भावाए. स ते आए ॥१४॥
(अनुयोगद्वार
३२१
सेते कि कौरा
भाग भाव लाभ ते कहे . भावभाव लाभ दुवे प्रकार नों. प० परूप्पोतं ते कहे है। t ० आगम सू. अ. नो० नो आगम सू. ते कि कोण श्रा आगम सू भाव लाभ. ते कहे है. आ० ग्रागम सूं भाव लाभ जे. जा० जाणी ने उपयोग सहित सूत्र पढ़. सेते. प्रा० आगम सू भाव लाभ. से ० ते. कि कौया नो नो श्रागम भात्र लाभ ते कहे . नो नो आगम सु भाव लाभ दुबे प्रकार नों के पर प्रशस्त नों लाभ स्नो लभसे ते कौण प० प्रशस्ता वस्तु नो लाभ ते कहे हैं. ज्ञान न लाभ दर्शन नों लाभ च चारित्र न लाभ से० ते एतले प्रशस्त लाभ कयो से० ते. कौण. प्रशस्त वस्तु नों लाभ को ० क्रोध नों लाभ माः मान न लाभ मा० माया न लाभ लो- लोभ नों लाभ. ०ते. एतले श्रशस्त वस्तु नो लाभ कयो । से० ते भाव लाभ ोते. लाभ
अथ इहां भाव लाभ रा २ भेद कया । प्रशस्त भाव नो लाभ ते ज्ञान. दर्शन. चारित्र, नों अनें अप्रशस्त माठा भाव न लाभ, क्रोध, मान, माया, लोभ, नों लाभ इहां कोधादिक में भाव लाभ कहाा छै । ते माटे ए भाव क्रोधादिक नें भाव कषाय कहीजे, ते भाव कवाय ने कवाय आश्रव कहीजे । तथा अनुयोग द्वार में इम कह्यो “सावज जोग विरह ते सावद्य : योग थी निवर्त्ते ते सामायक । इहां योगां नें सावद्य कह्या । अनें अजीव नें तो सावद्य पिणन कहीजे निरवद्य पिणन कहीजे । सावद्य. निरवद्य तो जीव नें इम कहीजे । इहां योगां ने सावद्य कह्या ते, माटे ए भाव योग जीव है । अनें योग आश्रव छै । इण न्याय योग आश्रव में जीव कहीजे । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ११ बोल सम्पूर्णा ।
४१