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विनयाऽधिकारः।
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अ० अथ अनन्तर. भ० भगवान् श्री महावीर. ते साधु ने. द. इन्द्रिय दमणहार. ६० मुक्त गमन योग्य. वो० वोसरावी छ काया विभूषा रहित एहवो शरीर जेहनों. ति इम कहिवो. मा० महणो महणो एहो उपदेश ते माहण अथवा नवगुप्त ब्रह्मचर्य थकी ब्राह्मण स. भ्रमण तपस्वी. वा० अथवा साधु भिक्षाइ करो भिक्षु. नि० वाह्य आभ्यंतर ग्रंथि रहित ते भणी निथ कहिए, इम भगवंते कहे हुँते शिष्य बोल्यो किस हे भगवन् ! दांति. काया वोसरावे ते मुक्त गमन योग्य इम कहिवा. मा० माहण बस स्थावर न हणे. स० श्रमण तपस्वो. मि. पाठ कर्म भेदे भिक्षाई जोवे. नि. निग्रंथ. तं० तेम्हा ने कहो मुनीश्वर. तिवारे गुरु ब्राह्मणादिक ध्यार नाम नों अर्थ अनुक्रमे कहिवो है. ति० जेणे प्रकारे विरत. स. सब पाप कर्म थकी निवृत्या. तथा. पे० राग. दो द्वेष क० कुवचन भाषण अ० अभ्याख्यान अछता दोष नों प्रकाशिवो. पे. पैशूनय. परगुण न असहिवो तेहना दोष नों उघाड़िवो ५० पर परिवार अनेरा नों दोष अनेरा भागले प्रकाशिवा. अ० अरति चित्त नों उद्वग. २० रति चित्त नी समाधि. मा० माया संसार विष परवंचना. मो० मृषा अलीक भाषण. मि० मिथ्या दशन सल्य तं तत्व में विष भतत्व नी बुद्धि अतत्व ने विषे तत्व नी बुद्धि. एहीज शल्य वि० तेह थको विरत. सं० पांच मुमति सहित. ज्ञानादिक सहित. स. सदा संयम ने विष सावधान. णो किणी सू क्रोध मकरे. गो मान रहित. एगो परे माया लोभ रहित एव गुण कलित माइण कहियो.
___ अथ इहां १८ पाप सू निवृत्यो. पांच सुमति सहित एहवा महा मुनि ने इज माहण कह्यो। रिण धावक ने माहण न कह्यो। डाहा हुवे तो विचारि जोजो।
इति ११ बोल सम्पूर्ण।
तथा सूयगष्टाङ्ग श्रु० २ ० १ पिण साधु ने इज माहण कह्यो छै। ने पार लिखिये छ।
___ एवं से भिकरवू परिणाय कम्मे परिणाय संगे परिणाय , गिहवासे उवसंते समिए सहिए सया जए से एवं वत्तवे तंजहा-समणेति वा माहणेति वा खंति ति वा दंते तिवा गुत्तति वा मुत्ते तवा इसीतिया मुणाति वा कित्तीति वा