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भ्रम विध्वंसनम् ।
ए० क्रियावादी प्रमुख नी श्रद्धहना तेहनी पाप संगति वर्जवा रूप. पु० पुरानो हेतु पुण्य प० पद सो० सांभली नें. पुण्य पद केहवो है. ते कहे है. ० स्वर्ग मोक्ष पामवा नों उपाय ते अर्थे ध० जिनोक्त धर्म एवं करी. शो० शोभनीक है जे पुराय पद ते सांभली नें. भ० भरत चक्रवर्त्ती पिण. भ० भरत क्षेत्र नों राजा. चि० छांडी नें. का० काम भोग. प० दीक्षा लोधी.
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अथ इहां पुण्य ना हेतु शुभ अनुष्ठान ने पुण्य पद कह्यो तिहां टीका में पिण इम कह्यो ते टीका लिखिये छै ।
“ पुण्य हेतुत्वात्पुण्यं तत्पद्यते गम्यते ऽर्थो ऽनेन - इति पदं स्थानं पुण्य पदम्”
इहां टीका में पुण्य नों हेतु ते पुण्य पद कह्यो । पुण्य नो हेतु किण में fer | शुभ योग शुभ अनुष्ठान रूप करणी नें कहिई, तेहथी पुण्य बंधे. ते मादे शुभ अनुष्ठान ने पुण्य नो हेतु कहीजे । पुण्य ना हेतु नें पुण्य शब्दे करी ओलखायो छै । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ३ बोल सम्पूर्ण ।
तथा प्रश्न व्याकरण में पिण इम कह्यो. ते पाठ लिखिये छै ।
Hors पक्खंदे काहिति न सुति धम्मं सोऊण यजे पमायंति ॥२॥
त कय पुराणा जेय
( प्रश्न व्याकरण ५ श्राश्र० )
स० [सर्व गति प० गमन ने का० करस्यै अ० अनन्तवार अ० अकृत पुण्य ते जेण श्रव निरोधक पवित्र अनुष्ठान न थी कीधूं ते जीव संसार में रुलस्येः जे० जे कोई. व० वली. न सांभले. ध० धर्म नें. सो सांभली ने य० वली. जे प० प्रमाद करे. सम्बर श्रादरे नहीं.