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२७६.
भ्रम विध्वंसनम्।
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श्रावका वांद्यो कह्यो. ते तो गुण प्राम किया। अनें “नमसइ" ते मस्तक नवायो। पहिला कडुवा वचन शेख श्रावक ने त्यां श्रावका कहा हुन्ता। ते माटे खमाया ते तो ठीक, परं नमस्कार कियो तिण में धर्म नहीं। ए का आज्ञा वाहिरे छ। सामायक. पोषां. में सावध रा त्याग छै। ते सामायक. पोषाः में माहोमाही श्रावक नमस्कार करे नहीं, ते माटे ए विनय सावध छै। वली पोपलो में उत्पला नमस्कार मियो ते पिण आवतां कियो। अनें पोषली जातां वन्दना नमस्कार न कियो ! ते माटे धर्म हेते नमस्कार न कियो। जे धर्म हेते नमस्कार कीधी हुवे तो जातां पिण करता। वली शंख नों विनय पोषली कियो ते पिण आवतां कियो। पिण पाछा जावतां विषय कियो चाल्यो नथी। इणन्याय संसार हेते विनय कियो. पिण धर्म हेते नथी । जिम साधु नो विनय करे ते श्रावक आवतां पिण करे अनें पाछा जावतां पिण करे । तिम पोसली नी विनय उत्पला पाछा जातां न कियो। तथा पोषली पिण शंख कना थी पाछा जातां विनय न कियो। ते माटे संसार नी ने ए विनय कियो छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति २ बोल सम्पूर्ण।
केतला एक कहे जो श्रावक ने नमस्कार कियां धर्म नहीं तो अम्बड ना चेला अम्वड ने नमस्कार क्यू कीधो। अम्वड ने धर्म आचार्य क्यूं कह्यो। तेहनों उत्तर-अम्बड ने चेला नमस्कार कियो ते पोता ना गुरु नी रीति जाणी पिण धर्म न जाण्यो। पहिला सिद्धा ने अरिहंता ने वांद्या तिण में जिन आज्ञा छै। अने पछे मास्वर में वांद्यो तिण में जिन आशा नहीं। ते माटे धर्म नहीं। अम्वड ने चलो नमस्कार कियो तिहां पहवो पाठ छ। ते पाठ लिखिये छै ।
_ नमोत्थुणं अम्बडस्स परिवायगस्स अम्हं धम्मायरिस्स धम्मोवदेसगस्स।
(उवाई प्रल १३)