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श्रम विध्वंसनम् ।
हां २ प्रकार नों विनय मूलं धर्म बतायो । तिण में साधु रा पञ्च महाअंत ते साधु से विनय मूल धर्म अनें श्रावक रा १२ व्रत ११ पड़िमा श्रावक नों विनय मूल धर्म ए तो साधु श्रावक नो धर्म बतायो छै । ते धर्म थी कर्म वीणिये तै डालिये, ते भणी व्रतां रो नाम विनय मूलं धर्म कह्यो है । जे व्रतां रा अतिचार टाली निर्मल पाले ते व्रतां रो विनय कहिए । इहां तो साधु श्रावकां रा व्रत सूं किण ही जीवने आसात ना उपजे नहीं, ते भणी व्रतां नें विनय मूल धर्म कही जे ए तो अण आसातना विनय रो लेखो कह्यो पिण शुश्रूषा विनय नों इहां कथन नहीं । तिवारे कोई कहेहै- धावक री शुश्रूषा तथा विनय न कह्यो. तो साधु रो पण शुश्रूषा तथा विनय इहां न को । श्रावकां रा व्रतां ने' इज विनय मूल धर्म कहिणो, तो साधुरी शुश्रूषा तथा विनय करे ते क्रिण न्याय इम कहे तेहनों उत्तरहां तो शुश्रूषा विनय करे तेहनों कथन चाल्यो नहीं । साधु श्रावक, विहं व्रतां नाम विनय मूल धर्म को छै । पिण साधु री शुश्रूषा विनय करे तेहनी तो घठा श्री तीर्थङ्कर देवे आज्ञा दीधी छै । “उत्तराध्ययन” थ० १ साधु री शुश्रूषा थथा विनय री भगवान् आज्ञा दीधी छै तथा “दश वैकालिक" अ० ६ शुश्रूत्रा विनय साधु रो करणो कह्यो । विणश्रावकरी शुश्रूषा तथा विनय री आज्ञा किण ही सूत्र में कही न थी । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।.
इति १ बोल सम्पूर्ण
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केतला एक कई - भगवतो श० १२ उ० १ कह्यो । पोपली श्रावक नें उत्पला श्राविका वन्दना नमस्कार कियो । जो श्रावकां रो विनय कियां धर्म नहीं सो उत्पला श्राविका पोपली श्रायकां नो विनय क्यूं कियो । इम कहे तेहनों उत्तर
उत्पला श्राविका पोपली श्रावक नों विनय कियो ते संसार नी रीति जाणी के साची पण धर्म न जाण्यो । जिम पांडु राजा पिण संसार भी रीति जाणी भारदनों विनय कियो कह्यो ते पाठ लिखिये छै ।
ततेां से पंडुराया कच्छुल्ल पारयं एत्रमाणं पासति २ त्ता पंचहि पंडवेहिं कुंतीय देवीएसद्धिं आसणाओ