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विनयाऽधिकारः।
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___न नमस्कार होज्यो. अं• अम्बद नामा. प० परिव्राजक दंउधर संन्यासी. थ० म्हारा धर्माचार्य नं. ध० धर्म ना उपदेशक में.
अथ इहां चेला कह्यो—जमस्कार थावो म्हारा धर्माचार्य धर्मोपदेशक में इहां अघड परिमाजक ने नमस्कार थावो एहवू कह्यो। अम्बउ शमणोपासक ने नमस्कार थावो इम न कयूं। ए श्रमणोपासक पद छांडी परिमाजक पद ग्रहण फरी नमस्कार कीधी ते माटे परिव्राजक ना धर्म नो आचार्य, अने परिबालागा धर्म नों: उपदेशक छै। तिण ने आगे पिण वन्दना नमस्कार करता हुन्ता। पछे जिन धर्म पिण तिणकने पाम्या। पिण आगलो मुल पणो मिट्यो नहीं। ते माटे सन्यासी धर्म रो उपदेशक कह्यो छ। तिवारे कोई कहे-ए चेलां श्रापक रा व्रत मम्बट पासे लिया । ते माटे धर्माचार्य अम्बड ने कह्यो छै। इन कहे तेहगों उत्तर--इम जो धर्माचार्य छुवे तो पुल फने पिता शावक राबत धारे तो तिष रे लेखे पुत्र नै धर्माचार्य कहीजे । इमहिज स्त्री का भरि भावना का व्रत धारतो तिण रे लेखे स्त्री ने पिण धर्माचार्य कहीजे। तथा सासू वाहू कनें त आदरे. तथा सेठ गुमाश्ता कने व्रत आदरे. तो तिण ने विण धर्माचार्य पाहीजे । बली 'व्यवहार" सूत्र में कह्यो साधु ने दोष लागां* पछाकड़ा श्रावक पासे तथा देषधारी पाले आलोषणा करी प्रायश्चित्त लेवे तो १० प्रायश्चित्त में आटमो प्रायशित नवी दीक्षा पिण तेहनें कह्यां लेवे तो तिण २ लेखे ते पछाकड़ा श्रावक में तथा वेषधारी ने पिण धार्माचार्य कहीजे। अ जिण पासे धर्म सीख्या तिण ने वन्दना करणो कहेतिण रे लेखे पाछे कह्या ते सर्व में वन्दना नमस्कार करणी: जो अग्बट में पासे चेला धर्म पाया ते कारण तेहने वांद्यां धर्म छै तो ए पाले बाह्या--ज्यां पाले धर्म पावा छै, त्या सर्व ने वांद्यां धर्म कहिगो। अब ने धर्मावार्थ कहे तो लिग रे लेखे ए पाछे कद्या त्या सर्व ने धर्माचार्य कहिणा। पिण इम धर्माचार्य हुये नहीं। आचार्य मा गुण ३६ वह्या छै अनें अम्बड में तो ते गुण पाये नहीं । भावार्य पद तो ५ पद माहि छै। अनें अम्बड तो पांच पदां माही नहि छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ३ बोल सम्पूर्ण ।
जो साधु भ्रष्ट हुअा पुनः श्रावक बनता है उसको "पछाकड़ा प्रावक" कहते हैं ।
"संशोधक".