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भ्रम विध्वंसनम् ।
हुई शुभ ध्यान नो विच्छेद हुई'. ह. हां गौतम ! जे वैद्य छेदे ते वैद्य ने एक धर्मान्तराय क्रिया
इहां गोतम स्वामी पूछयो, जे साधु ऊभो आतापणा लेवे , तेहना मर्श वैद्य देखी ने ते अर्श छे । हे भगवन् ! ते वैद्य ने क्रिया लाने, अनें “जस्स छिज्जति” कहिती जे साधु री अर्श छेदाणी ते साधु ने क्रिया न लागे। पिण एक धर्मान्तराय साधु ने पिग हुई, ए प्रश्न पूछदो-तिवारे भगवान् कह्यो। हां गोतम! जे अर्श छे ते वैध ने क्रिया लागे, अने जे साधु री अर्श छेदाणी ते साधु ने क्रिया ग लागे। पिण एक धर्मान्तराय साधुरे पिण हुये, ए शब्दार्थ कह्यो। अथ इहां कचो-जे साधु नी अर्श छेदे. ते वैध ने क्रिया लागे एहबू कयों पिण धर्म न कयो। ए व्यावच भाशा याहिरे छै। साधु रे गृहस्थ पासे कार्य फरावा रा त्याग छै। अनें जिग साधु री आज्ञा विगा साधु रो कार्य कियो, है साधु रो त्याग भगावणघालो है। कदाचित्र साधु अनुमोदे नहीं । तो ते साधु रो प्रत न भांगे। पिण अंगावण रो कार्य करे तिण ने तो त्यागनों भंगावण वालो इज कही जे। जिम कोई साधु में आधा कर्मी आदिक असूजतो अशनादिक जाणो में देवे, अनें साधु पूछी चोकस कर शुद्ध जाणी ने लियो तो ते साधु ने तो पाप न लागे। पिण आधा कम्मी आदिक साधु में अकएरतो दियो तिण ने तो पाप लाग्यो ते तो त्याग मना वग वालो इत कही जे। पिण धर्म न कहिये। तिम साधु रे गृहस्थ पाले जे व्यावच करावण रा त्याग ते व्याघच गृहस्प करे। अने' साधु अनुमोदे नहीं, तो तिण रा त्याग न मांगे। पिण आज्ञा बिना अकल्पनीक कार्य गृहस्थ कियो तिण ने तो त्याग भंगावण रो कामी कहिये। पिण तिण में धर्म न कहिये। तथा वली दूजो दृष्टान्त-जिम ईर्या सुमति विना चाले अने एक पिण जीव न मुयो तो पिण ते साधु ने छह काय नों घाती कहि जे, आशा लोपी ते माटे। तिम ते वैध साधु री अर्श दी आज्ञा विना ते वैध ने पिण त्यारा भंगावण रो कामी कहीजे। तिण सूं ते वैद्य ने क्रिया लागती कही। जिम ले वैध अर्स छेदे तेइनें क्रिया लागे। तिम अग्नि में वलता ने कोई गृहस्य बाहिरे काढ़े तिण ने किला हुई। पिण धर्म न हुई। तिघारे कोई कहे-ए वैद्य ने किया कही ते पुण्य नी क्रिया है। पिण पाप नो क्रिया नहीं। एहवो ऊधो अर्थ करे