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भ्रम विध्वंसनम्।
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रेलेखे तिण ने पिण धर्म होसी ॥७॥ साधु ऊचा थी पड़ता में वाई बैठो करें तो तिण री श्रद्धा रे लेखे तिण ने पिण होसी ॥ ८॥ साधु आखड़ पड़िया ने वाई बैठो करे तो तिण री श्रद्धा रे लेखे तिण में पिण धर्म होसी ॥ ६॥ साधु रो माथो दूखतो हुवे जव वाई माथो दावे तो तिण री श्रद्धा रे लेखे तिण ने पिण धर्म होसी ॥ १०॥ साधु रा दूखणा उपरे वाई मलम लगावे तो तिण री श्रद्धा रे लेखे तिण में पिण धर्म होसी ॥ ११॥ साधु रा दूखणा ऊपर वाई पाटो बांधे तो तिण री श्रद्धा रे लेखे तिण में पिण धर्म होसी ॥ १२॥ साधु ने मूर्छा ( लू) हुई छै ते वाई मुसले तो तिण री श्रद्धा रे लेखे तिण में पिण धर्म होसी ॥ १३ ॥ इत्यादिक अनेक कार्य साधु रा वाई करे, साधु ने दुःखी देखी ने पीड़ाणो देखी ने घाई साधु रे साता करे, जीवां बचावे । जो सुभद्रा ने फाटो काढ्यां धर्म होसी तो यां में पिण धर्म होसी। वाई साधु रा कार्य करे तिमही भायो साध्वी रा कार्य करे तो उण री श्रद्धा रे लेखे भाया ने पिण धर्म होसी। ते बोल लिखिये छ। साध्वी रोपेट भायो मुसले १ साध्वी री पेटूंची भायो मुसले २ साध्वी रे गोलो भायो मुसले ३ साध्वी रे माथो दुखे जब भायो मुसले ४ साध्वी रे मूर्छा भायो मुसले ५ साध्वी रे दुखणा ऊपरे भायो मलम लगावे ६ साध्वी रे दूषणा ऊपरे भायो पाटो बांधे ७ साध्वी पड़ती ने भायो झले ८ साध्वी पड़ी ने भायो उठावे बेठी करे तो उण री श्रद्धा रे लेखे तिण ने पिण धर्म होसी । साध्वी रो पेट दुखे छ, तलफल २ करे छ, तिण रो पेट भायो मुसले १० इत्यादिक साधु रा कार्य वाई करे, तिम साध्वी रा भायो करे । जो सुभद्रा साधु री आखि माहि सूं फांटो काड्यां रो धर्म होसी तो सारां ने धर्म होसी। जो यां में जिन आज्ञा देवे नहीं तो धर्म पिण नहीं। अनें जिण रीते जिनवर को छै तिण रीते साधु साध्वी ने बचायां धर्म छै । व्यावच कीधी पिण धर्म छ । भगवन्त आप तो सरावे महीं आज्ञा पिक देवे नहीं, सिखाये पिण नहीं, तिण फर्शव्य में धर्म से पिण अंश नहीं। डाहा वे तो विचारि जोइजो। इति भिक्षु महा मुनिराज कृत वार्तिक सम्पूर्णम् ।
इति : बोल सम्पूर्ण।