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. भ्रम विध्वंसनम् ।
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२ छाड्यो छै ते तो माठो छै तरे छोड्यो छै। जे साधु साध्वी जिन कल्पी. स्थविर कल्पी त्याने अग्नि माहि बलतां में कोई गृहस्प वाहि पकड़ ने बाहिरे काढ़े, अथवा सिंहादिक पकड़ता ने झाली राखे । अथवा ऊचा थी पड्यां ने बैठो करे । अथवा भाखड़ पड़िया ने' वैठो करे। ते गृहस्थ में धर्म कहे छै। जो तिण ने इम कियां धर्म होसी तो इण अनुसारे अनेक बोलां में धर्म होसी। ते वोल लिखिये छ। - पडिमाधारी साधु अथवा जिन कसो साधु अथवा स्थविर कल्पी साधु तथा हर कोई साधु अवेत पडयो छै। तिण थी चालगी न आवे छै। गाम तथा उजाड़ में पड़यो छ । तिण साधु ने गाड़ी. घोड़ो. ऊट. रथ. पालखी. पोठिये. असे. गधे, इत्यादिक हर कोई ऊपर बैसाण में गाम माँही आणे ठिकाणे आणे तो उण री श्रद्धा र लेखे. उग री परू गा रे ले थे. तिग में पिग धर्धा होती ॥१॥ अथवा कोई साधु गाम तथा उजाड़ में असमाधियो पड्यो छै तिण सूं हालणी चालणी न आवे. वैसगी. उठणी. न आवे छै, अन बिना मरे छै। तो उण री श्रद्धा रे लेखे अशना. दिक ले जाय ने दियां में हाथ सं खवायां में पिण धर्म छै ॥२॥ अथवा कोई साधु उजाड़ में अथवा गाम माहि अचेत पड़यो छै। ति ग तूं वोलणी, चालणी. न आवे छ। उठणी वैसणी. पिण न आवे छ । औषध खाधा विना जीवां मरे छ, तो उण री श्रद्धा रे लेखे औषधादिक ले जाय में मुख माहि घाल ने सचेत करे. डील रे मुसल ने सचेत करे. तिण में पिण धर्म होसी ॥३॥ अथवा किण ही साधु रे पाटी (रोग विशेष ) हुवो छ, गम्भीर हुवो छ, अथवा गूमड़ो हुवो छ, तिण दुख सूं हालणी. चालणी. न आवे छै, गोचरी पिण जावणी न आवे, ते साधु अशनादि विन खाधा पानी बिना पीधां जोयां मरे छ। तो उण री श्रद्धा रे लेखे अशनादिक आणी खवावे, अथवा तिण ने गोचरी करी ने आणी आपे तिण में पिण धर्म होती ॥ ४॥ अथवा कोइक साधु गरढ़ो ( वृद्ध ) ग्लान असमाधियो छै, तिण सू पोथ्यां रा बोझ तूं उपकरण रा बोझ तूं चालणी न आवे छै गाम अलगो छ, भूख तृषा पिण घणी लागे छ, तिण रे असाता घणी छै। तो उण री श्रद्धा रे लेखे वोझ उठायां रोपिण धर्म होसी ॥ ५॥ अथवा किण ही साधु ने शीतकाले शीत घणो लागे छै, वाय रो पिण बाजे छ, तिण काल में मेह पिण घणो बरसे छ, साधु पिण घणो धूजे छै। तो उण री श्रद्धा रे लेखे कोई राली ( गूदड़ी ) ओढावे विण में पिण धर्म होसी ॥६॥ अथवा किण ही साधु रो पेट दूखे छै। तलभल २