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वैयावृत्ति अधिकारः।
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करे है, महा वेदना छै, पेट मुसल्या विना जीवों मरे है। तो उणरी श्रद्धार लेखे पेट मुखले तिण में पिण धर्म होगी ॥ ७॥ अथवा किण ही साधु रे पेट्रंची (धरण ) टली छ। तिण री साधु ने यगो दुःख छ। आहार पिण न भावे छै। फेरो ( दस्त लागनी ) पिण घणों छै। तो उण री श्रद्धा रे लेखे पेट्रंबी सुपले तिण में पिण धर्म होसी ॥ ८॥ अथवा किण ही साधु रो गोलो चढ्यो छै, महा दुःखी है, हालगी चालणी पिण न आने छै, मौत पात है, तो उग री श्रद्धा रे लेखे गोलो मुसले साधु रे साता करे तिण में पिण धर्म होसी !!६॥ साधु में कल्पे ते भक्ष्य नहीं करले ते अभश्च, खवाय नवावे तो तिगरी श्रद्धा रे लेखे तिण में पिण धर्म होसी ॥ १०॥ साधु रे जिप वस्तु रा त्याग छ, अने ते तो मरे छै, तो उण री श्रद्धा रे लेखे त्याग भंगाय बचायां पिग धर्म होसी ॥ ११॥ साधु री ज्यावच कल्ये छै ते तो जित आज्ञा सहित छै, नहीं कल्पे ते व्यायच तो अकार्य छ । साधु ने दुःखी देखनें उण री श्रद्धा रे लेखे नई कल्ये ते व्यावच कीयां रिण तहने धर्म होसी ॥ १२॥ साधु नों संथारो देखी साधु रे धणी असाता देखो साधु ने भरतो देखी में उगरी श्रद्धा रे लेखे किण ही अन्नपाणी पुख माही घालमो तिण में पिण धर्म होसी ॥ १३ ॥ साधु भूखो छ, अशनादिक विना मरे छै, तो उगरी धद्वारे लेखे अशुद्ध वहिरायां पिण धर्म होसो ॥ १४॥ चलो केइक पड़ी कहे हैं, सुभद्रा सती साधु री आंख माहि थी फोटो काढ्यो तिण में धर्म कहे छै, उद तो इण अनुसारे अनेक बोलां में धर्म होसी, ते कोल कहे छै। किणहिक सावरे भांख में फाटो पज्यो ते वाई काख्यो तो उण री श्रद्धा २ लेखे उण में पिण धर्म होसी ॥१॥ अथवा साधु रे पेट दुःखे छ, मरे छै, ते पाई पेट मुसले तो उण रो भखारे लेखे तिण में पिण धर्म होसी ॥२॥ किण ही साधु रो गोलो चढ्यो छै, जीव मौत घात छै, उग री श्रद्धा रे लेख वाई साधु रोयोलो मुस्ले लिण ने पिण धर्म होसी ॥३॥ किण हो साधु रे ऐतूंची टली 2. निम से अप्लो दुःख छै, माहार पिण न मावे छ। फेरो रिण बणो छै। तो उण रीमालेख पाई पेटेंची मुसले तिण ने पिग धर्म होसी ॥४॥ सा न माहि बस से बाई बांहि पकड़ने बाहिरे काढे तो तिण री श्रद्धा रेल लिगा पण ती ॥५॥ साधु ऊंचा थी पड़ता में वाई भोले तो उग री श्रद्धा रे देखे ति में पिण धर्म होसी॥६॥ साधु आखड़ पड़ता में वाई झाळ राखे तो तिण री श्रद्धा