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भ्रम विध्वंसनम् ।
पुण्य
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व्यावच नें ठामे साधर्मिक कह्या, तिण में श्रावक श्राविका नहीं अनें रूढ़ भाषाई करी तो मागध. वरदाम प्रभास. ए ३ तीर्थ नाम कहि वोलाया छै । पिण तेह संसार समुद्र तरे नहीं । तिम रूड़ भावाई श्रावक श्राविकां ने साधम्र्मी कोई कहे तो पिण दश व्यावच में साघम्मी कह्या तिण में साधु साध्वी नें इज न कह्या । ते संघ साधर्मी साधु नीज व्यावच पिग गृहस्थ री व्यावच कियां तीर्थङ्कर गोल
har, for श्रावक श्राविकां ने
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g तीर्थङ्कर गोत्र बंधे ।
बंधे नहीं । बिना धर्म ।
श्रावक नी व्यावच करणी री तो भगवान् री आज्ञा नहीं । अनें आज्ञा निपजे नहीं । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ८ बोल सम्पूर्ण ।
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aaths एक अज्ञानी साधु री सावध व्यावच गृहस्थ करे तिण में धर्म थापे है । तिण ऊपर श्री "भिक्षु" महामुनि राज कृत वार्त्तिक लिखिये छै ।
hs एक मूढ मिळावी भारी कर्मा जिन आज्ञा वाहिरे धर्म ना स्थापन हार जिनवर नो धर्म भाज्ञा बाहिरे थापे छै । ते अनेक प्रकार कूड़ा २ कुहेतु लगावै । खोटा २ दृष्टान्त देई धर्म नें जिन आज्ञा बाहिरे थापे छै । कूडी २ चर्चा करी ने
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ते कहे छै पड़िमा -
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कूड़ा २ कुहेतु पूछे, जिन आज्ञा चाहिये धर्म स्थापन रे तांई धारी साधु अग्नि माहि बलता नें वांहि पकड़ने वाहिरे काढ़ अथवा सिंहादिक पकड़ता ने काल राखे । तथा हर कोई साधु साध्वी जिन कल्पी स्थविर कल्पी. त्यांनें वांहि पकड़ने वाहिरे काढ़ इत्यादिक कार्य करी ने साता उपजाये । अथवा जीवां वचावे । अथवा ऊंचा थी पड़तां नें झाल बचावे | अथवा मड़ पड़ता ने माल बचावे | अथवा ऊंचा थी पड़तां नें बैठो करे । अथवा आखड़ पड़ता ने बैठो करे । तिण गृहस्थ में भगवन्त अरिहन्त री पिण आज्ञा नहीं । अनन्ता साधु-साध्वी गये काले हुवा. त्यांरी पिण आज्ञा नहीं । जिण साधु नें बचायो तिण री पिण आज्ञा नहीं । तिण नें पछे पिण सरावे नहीं । थे आछो काम कियो इम पिण कहे नहीं । तिण नें पहिलां पिण सिखावे नहीं ।
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इस काम कीजे, तिनें इसी पण आज्ञा देवे नहीं । तूं इसो काम कर इम तो