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वैयावृत्ति अधिकारः ]
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तथा ' व्यवहार” उ० १० में सङ्घ साधर्मी साधु ने इज कह्या । तथा प्रश्न व्याकरण तीजे सम्वर द्वारे सङ्घ साधम्म साधु ने कह्या । इम अनेक ठामे सङ्घ साधम्र्मी साधु । साधु नी व्यावच करण री भगवन्त नी आज्ञा है । अने व्यावच ने ठामे सङ्घ नाम समुदाय वाची है । ते साधु ना समुदाय ने इज कह्यो है । पिण व्यावच ने ठामे सङ्घ कह्यो तिण में श्रावक न जाणवो । चतुर्विध सङ्घ मैं श्रावक ने सङ्घ कह्यो । पिण व्यावच नें ठामे सङ्घ कह्यो तिणमें श्रावक नहीं हुवे समुदाय रो नाम पिण सङ्घ कह्यो है ते पाठ लिखिये छै
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समूह गं भंते! पडुञ्च कति परिणीया, प० गो० त पडिणीया प० तं० कुल पडिणीए गण पडिणीए संघ पडिणीए ।
( भगवती श० ८ ड०८ )
० समूह ते साधु समुदाय ते प्रति अंगीकरी ने स० भगवन्त ! के० केतला प्रत्यनीक परूया. गो० हे गौतम! त्रिण प्रत्यनीक परूप्या. तं ते कहे छे. कु० कुल चंद्रादिक तेहना प्रत्यभीक. गगण कोटिकादि तेहना प्रत्यनीक सं० संजना प्रत्यनीक, अवर्णवाद बोले.
इहां पिण कुल, गण, सङ्घ, समुदाय याची कला, तेहनी टीका में पिण इम को ते टीका लिखिये छै 1
“समूहं साधु समुदायं प्रतीत्य तत्र कुलं चन्द्रादिकं, तत्समूहो गणः कोटिकादिः तत्समूहः संवः प्रत्यनीकता चैतेषामवर्ण वादादिभिरिति "
अथ इहां पिण साधुना समुदाय में कुल गण संघ. कह्यो । तीना ने -समूह कह्या । तिण में संघ नाम समुदायनों को तथा उत्तराध्ययन अ० २३ गा० ३ में कह्यो । "लील संघ समाकुलो" इहां विण शिष्य नों समुदाय ते संघ को भणी दश व्यावच में संघ कह्यो ते साधु ना समुदाय नें इज कह्यो है । असा पण साधु साध्वीयां में इज कह्या छै । किणहिक देशे लोक रूढ़ Hatani ने साधम्र्मी कहि बोलाविये है, से रूढ़ भाषाई नाम छै । पिप्प
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