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ममः विध्वंसनम्।
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भने १२ व्रत धारे तेहने रिण श्रावक कहिये। ते माटे प्रथम तथा छेहला तीर्थङ्कर ना सर्व साधु रे पांच महाव्रत छै। ते भणी तेहिज साधर्मिक कहीजे। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ७ बोल सम्पूर्ण।
तथा वलो उचाई में १० व्यावच कही छै। ते पाठ लिखिये छ ।
सेकितं यावच्चे दसविहे प० तं. आयरिय वेयावच्चे. उवज्झाय वेयावच्चे. सेह वे०. गिलाण वे०. तवस्सि वे०. थेरे वे०. साहम्मिय वे०. कुल वे०. गण वे०. संघ वेयावच्चे।
(उवाई)
से० ते केहो भात पाणी आदिक अवष्टम्भादिक घन नों देवो. तेहनें दश प्रकारे कह्या. तीर्थ करे. २० ते रहे है, श्रा० प्राचार्य पंचाचार नों प्रतिपालक. तेहनें वैयावच अवष्टम्भ साहाय्य देवो. उ० उपाध्याय द्वादशांगो ना भणणहार तेहनी वैयावच. से० शिष्य नत्र दीक्षित नी वैयावच. गि ग्लान नो वैयावच. त० तपस्वी छठ २ अठमादिक तेहनी वैयावच. थे. स्थविर तीन प्रकार तेहनी वैयावच. सा. साधर्मिक साधु साध्वी तेहनी वैयावच. कु० गच्छ 'नो समुदाय ते कुल तेहनी वैयावर. ग. कुल नों समुदाय ते गण तेहनी वैयावच. सं० गण नों समुदाय ते संघ तेहनी वैयावच. आहारादिक अवष्टम्भ देवो.
श्रय इहां पिण दश व्यावच में दसुंइ साधु कह्या । पिण श्रावक में न कह्यो। तेहनी टीका में पिण इम कह्यो। ते ठीका लिखिये छै।
"साधम्मिनः साधुः साध्वी वा कुलं गच्छ समुदायः गणः कुलानां समुदायः, संघो गण समुदाय इति"
इहाँ टीका में पिण कुल गण सदनों अर्थ साधु नों इन समुदाय कीधो। मो. साधी साधु साध्वी ने इज कहा। पिण श्रावक श्राविका ने न कह्याः।