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दामाऽधिकारः।
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वली “रायपसेणो” में प्रदेशी दानशाला मंडाई कही छै। राज रा ४ भाग करने आप न्यारो होय धर्म ध्यान करवा लाग्यो। केशी स्वामी विहूं इ ठामे मौन साधी छै। पिण इम न कह्यो-हे प्रदेशी ! नीन भाग में तो पाप छ। परं चौथो भाग दानशाला रो काम तो पुणय रो हेतु छै। थारो भलो मन उठ्यो। ओ तो आच्छो काम करिवो बिचासो। इस चौथा भाग में सरायो नहीं। केशी स्वामी तो विहूं सावध जाणी ने मौन साधी छै। ते माटे तीन भाग रो फल जिसोई चौथे भाग रो फल छै। केइ तीन भाग में पाप कहे चौथा भाग में पुणय कहे। त्यांने सम्यग्दृष्टि न्यायवादी किम कहिये। केशी स्वामी तो प्रदेशी १२ ब्रत धावां पछे एडवू कह्यो। जे तू रमणीक तो थयो पिण अरमणीक होय जे मती। तो जोवोनी १२ व्रत थी रमणीक कह्यो छै। पिण दानशाला थी रमणीक कह्यो नथी। साहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति १५ बोल संपूर्ण।
तिवारे केइ कहे -- असंयती ने दियां धर्म पुणय नहीं तो सूत्र में १० दान क्यूं कह्या छै। ते माटे १० दान ओलखवा भणी तेहना नाम कहे छै ।।
दसविहे दाणे १० सं०अणुकंपा संगहे चेव भया कालुणि एतिय । लज्जाए गार वेणंच अधम्मेय पुण सत्तमे। . धम्ने अट्टमे बुत्ते काहिइय कयन्तिय ॥
( सूत्र ठाणांग ठा०१०)
द० दश प्रकारे दान. ५० परूप्या. ते ते कहे है। अ० अनुकम्पा दान ते कृपाये करी दीनां अनाथां ने जे दीज. ते दान पिण अनुकम्पा कहिये. कोई रांक अनाथ दरिद्री कष्ट पड्यां रोगे शोके हैराणां ने अनुकम्पाए दीजे ते अनुकम्पा दान। (१) सं० संग्रह दान ते कष्टादिक ने विषे साहाय्य ने अर्थे दान दे अथवा गृहस्थ में आपी ने मुकावे। (२। भ० भय करो दान