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लब्धि-धिकारः।
अथ अठे पिण इम कह्यो-सात प्रकारे छद्मस्थ जाणिये। अने सात प्रकारे केवली जाणिये। केवली तो ए सातूं इ दोष न सेवे. ते भणी न चूके. अनें छद्मस्थ ७ दोष सेवे ते भणी छद्मस्थ सात प्रकारे चूके छै। तो ते छद्मस्थ पणे जे सावध कार्य करे तेहना थापना किम करणो। छद्मस्थ पणे तो भगवन्ते लब्धि फोडी गोशाला ने बचायो। अने केवल ज्ञान उपना पछे लब्धि फोड्यां उत्कृष्टि ५ क्रिया लागती कही। तो केवली नो बचन उत्थाप ने छमस्थ पणे लब्धि फोड़ी तिण में धर्म किम थापिये। अने जो लब्धि फोड़ी गोशाला ने बचायां धर्म हुवे तो केवल ज्ञान उपना पछे. गोशाले दोय साधां वाल्या त्यांने क्यूं न बचाया। जो गोशाला में बवायां धर्म छै तो दोय साधां ने बचायां तो धर्म घणो हुवे। तिवारे कोई कहे भगवान् केवली था सो दोय साधां रो आयुषो आयो जाण्यो तिण सून बचाया। इम कहे तेहनो उत्तर-जो भगवान् केवलज्ञानी आयुषो आयो जाण्यो तिण सूं न वचाया तो और गौतमादि छद्मस्थ साधु लब्धि धारी घणा इ हुन्ता। त्यांने तो आयुषो आयां री खबर नहीं त्यां साधां ने लब्धि फोडी ने क्यूं न बचाया। यदि कहे और साधां ने भगवान् बर्ज दिया तिण सूं और साधां पिण न बचाया। तिण ने कहिणो और साधां ने वर्ध्या ते तो गोशाला सुं धर्म चोयणा करणी वी छै। वालपा रा कारण माटे, पिण और साधां में इम तो वो नहीं. जे याँ साधा ने बचाय जो मती। ए तो गोशाला सूं बोलणो वौँ। पिण साधां ने बचावणा तो वा नहीं। वली विना बोल्यां इ लब्धि फोड़ ने दोय साधां ने बचाय लेवे बचावां में बोलवा रो काई काम छै। पिण ए लब्धि फोड़ी बचावण री केवली री आज्ञा नहीं। तिण सूं और साधां पिण दोय साधां ने बचाया नहीं। लब्धि तो मोहनी कर्म रा उदय थो फोडवे छै। ते तो प्रमाद नों सेववो छै। श्री भगवन्त तो केवलज्ञान उपना पछे मोह रहित अप्रमादी छै। तिण सूं भगवान् पिण केवलज्ञान उपना पछे लब्धि .फोड़ी ने दोय साधां ने बचाया नथी। तिहां भगवती नी टीका में पिण एहवो कह्यो छै, ते टीका लिखिये छै ।
- इह च यद् गोशालकस्य संरक्षणं भगवता कृतं तत्सरागत्वेन दयैक रसत्वात् भगवतः यच्च सुनक्षत्र सर्वानुभूति मुनि पुंगवयो न करिष्यति तद्वीतरागत्वेन लब्ध्यनुपजीवकत्वात् अवश्यं भावि भावत्वात् वेत्यवसेयम् इति"