________________
वैयावृत्ति अधिकारः।
-
- - wwwvvvvvvvvvvvvvvvvvvv
. इ० इस संसार माहे. मे एकै शाक्यादिक अश्या स्वोर्थी. सा० सुख ते सुखेज करी बाई पर दुःख थकी सुख न थाइ'. जे जे कोई शास्मादिक इन कहे तिहां सोक्ष विचारणा में प्रस्तावे. प्रा. भार्य तीर्थकर नों परूप्यो मोक्ष मार्ग छोहे. परम समाधि नों कारण ज्ञान. दर्शन. चारित्र रूप इण भाषिवे परिहरी संसार. माहें भ्रमण करे तेहीज देखाडे छै॥६॥
महो दर्शनी. मा० रखे ए पूर्वोक्त इण बचने करीज सुखे सुख थाई. इम श्री जिन मार्ग में होगता हुन्ता. अल्प थोडे विषय में सुखे करी गमाडो छो. पणा मोक्ष ना एख. श्रा असत्य में श्रण छोडवे करी ने मोक्ष नथी, निन्दा में करीवे मोज न जाई. ते लोह पाणियानी परे रसी.
अथ इहां कह्यो-साता दिगणं साता हुने गम कहे ते आर्य मार्ग थी मलगो कह्यो। समाधि मार्ग थी त्यारो कह्यो। जिग धर्म री हेलणा रो फरणहार. मल्प सुखा रे अर्थे घगा सुखां रो हारणहार, ए असत्य पक्षे अणछांजवे करी मोक्ष नहीं। लोह वाणिया नी परे घणो दूरसी, साता दियां साता परूपे, तिण में पतला अवगुण कहा, तो सावध साता में धर्म किम कहिये। तेहथी तीर्थङ्कर गोत्र किम बंधे। दशवकालिक अ० ३ गृहस्थ नो साता पूज्यों सोलमों अमाचार लागतो कह्यो। तथा गृहस्थ नी व्यावच कीधां अट्ठावीसमों अणाचार कह्यो। तया निशोय उ० १३ गृहस्य नो रक्षा निमित्ते भूनी कर्म कियां प्रायश्चित्त कह्यो। तो गृहस्थ री सावध साता यांच्या तीर्थङ्कर गोल किम बंधे। ए तो गुरु ना कार्य करी सन्तोष उपजावियो। तथा साधु माहोमाहि समाधि उपजाये। तथा शान. दर्शन. चारित्र री समाधि उपजायां तीर्थङ्कर गोल बाँधे । पिण सावध साता थी तीर्थडर गोत्र न बंधे ! डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ५ बोल सम्पूर्ण ।
पली कोई कहे-वीसा वोलो तीर्थङ्कर गोत्र बंधे तिण में सोलमों बोल पश प्रकार ती व्यावच करतो कह्यो। ते दश प्रकार नो व्यावच ना नाम कह छै। भाचार्य. उपाध्याय. स्थविर. तपस्वी. ग्लान. नयो शिष्य. कुल. गण, सङ्घ. सा. धम्मी. ए दश ज्यावच में सङ्ग अने साधम्मी में श्रावक ने घाले हैं। भने