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अथ वैयावृत्ति-अधिकारः।
कोई कहे जे यक्षे छात्रों ने मूर्छा गति कीधी ते हरि केशी मुनि व्यावच कही, ते भणी ए व्यावच में धर्म छै। जो यक्ष में पाप हुवे, तो व्यावच क्यूं कही। तलोत्तम्-ए तो ब्यावच सावध छै। आना बाहिरे छै। जे विप्र ना वालकां ने अचेत कीधा, ते तो प्रत्यक्ष विरुद्ध कार्य छै। जद केइ कहे-५ व्यावच में धर्म नहीं तो हरिकेशी मुनि इम क्यूं कह्यो। ए यक्षे व्यावच करी इम कहे तेहनों उत्तर---ए तो हरिकेशी मुनि आपरी आशङ्का मेटवा ने अर्थे कह्यो छै। ते पाठ लिखिये छ।
पुत्विंच इरिहं च अण्णागायं च,
मणप्पदोसो ण मे अत्थि कोई। जक्खाहु वेयावड़ियं करेंति, तम्हाहु ए ए णिहया कुमारा।
- (उत्तराध्ययन अ० १२ गा० ३२ )
पु० यक्ष मलगो थयो हिवे यती बोल्यो. पू० पूर्व. इ० वर्तमान काले. अ० अनागत काले. म० मोनें करी. ५० प्रद्वष. न० नथी. मे० माहेर. अ० है. को० कोई अल्प मात्र पिण. ज० अज्ञ. हु० निश्चय. से भयो वैयावच पक्षपात करे है. ते भणी. हु. निश्चय. ए० ए प्रत्यक्ष हण्या कुमार.
अथ इहां हरिकेशी मुनि कह्यो,---पूर्वे हिंवड़ा अने आगामिये काले म्हारो. तो किञ्चित् द्वेष नहीं। अने जे यक्ष व्यावत्र करी. ते माटे ए विप्र ना पालकां ने