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भ्रम. विध्वंसनम् ।
अथ इहां पिण कह्यो-जे साधु अनेरा में विस्मय उपजावे विस्मय उपजावतां ने अनुमोदे तो चातुर्मासिक दंड आवे। जो ए कार्य में धर्म हुवे तो प्रायश्चित्त क्यूं कह्यो। जे साधुने अनेरा में विस्मय उपजायां प्रायश्चित आवे तो अम्बड लोकां ने विस्मय उपजावा में भर्थे सौ घर्रा धारणो कियो तिण में धर्म किम कहिए। जिन साधु ने काचो पाणी पीधां प्रायश्चित्त भावे तो अम्बह काचो काणी पीयो तिण में धर्म किम हुवे। तिम विस्मय उपजायां पिण जाणवो। विस्मय उपजावता में अनुमोयाइ चातुर्मासिक दंस कह्यो, तो विस्मय उपजावण वाला में धर्म किम हुवे। श्री तीर्थङ्कर देवे तो ए कार्य अनुमोद्यां दंड कह्यो। तो ते कार्य कियां धर्मपुण्य किम कहिये। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ८ बोल सम्पूर्ण।
इति लब्धि-अधिकारः।
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