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प्रायश्चित्ताऽधिकारः।
न कह्या। ते कहिवा रो कई कारण नहीं। पहिला ५ मों अङ्ग रच्यो छै , पछे छठो ज्ञाता अङ्ग रच्यो । पछे सातमो अङ्ग उपासक दशा रच्यो। ते माटे पांचमों अङ्ग रच्यो ते वेलां ४ ज्ञानी १४ पूर्व धर था, तो पछे सातमों अङ्ग रच्यो ते बेला ४ ज्ञान १४ पूर्व किम न हुन्ता। ते अङ्ग अनुक्रमे रच्या तिम इज जम्बू स्वामी सुधर्मा स्वामी ने पूछयो छै। ते पाठ लिखिये छै।
___ जंबू पज्जुवासमाणे एवं क्यासी जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं उठुस्स अंगस्स णाआ धम्मकहाणं अयमद्धे पएणत्ते सत्तमस्स णं भंते अंगस्स उवासगदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पएणते ।
( उपासक दशा अ० १)
ज० जम्व स्वामी. ५० विनय करी में. ए० ईम बोल्या. ज० जो. भ. हे पूज्य ! स. . श्रमण भगवन्त ! जा० यावत. सं० मोज्ञ पहुंता तिणे. छ. छठा अङ्ग ना. णा० ज्ञाता. ध० धम कथा ना. अ० एहवा. म. अर्थ. प. परूप्या. स० सातमा ना. भ० हे भगवन् पूज्य ! अ० अङ्गा ना. उ० उपासक दशा ना. स. श्रमण भगवन्त महाबीर. जा० यावत. सं० मोक्ष' सेणे पहुन्ता. के० कुण. अ० अर्थ. ५० परूप्या।
अथ इहां पिण इम कह्यो। जे छठा अङ्ग शाता ना, ए अर्थ कह्या तो सातमा अंग नों स्यूं अर्थ, इम पांचमों अङ्ग पहिलो थापी पाछे छठो अङ्ग थाप्यो । अने छठों अङ्ग थापी पछे सातमो अङ्ग थाप्यो ते माटे पांचमां अङ्ग नी रचना में : ज्ञान १४ पूर्व धर गोतम ने कह्यो। ते सातमा अङ्ग में न कह्या तो पिण अटकाव नहीं। अने आनन्द रे संथरा रे अवसरे गौतम ने दीक्षा लियां बहुला वर्ष थया ते माटे ४ ज्ञान १४ पूर्व धर किम न हुवे। इणन्याय गौतम ४ ज्ञानी १४ पूर्व धर कषाय कुशील नियंठे हुन्ता। तिवारे आनन्द ने घरे वचन में खलाया छै। तथा बली भगवान् ४ ज्ञानी कषाय कुशील नियंठे थकां लब्धि फोड़ी ने गोशाला ने बचायो ए पिण दोष छै। वली गोशाला ने तिल बतायो. लेश्या सिखाई. दीक्षा