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भ्रम विध्वंसनम् ।
उत्तम जाति कुल रूव विणय विणाण लावण वीकम पहाणा सोभाग कति जुत्ता बहुधणकण णिचय परियाल फीडिया णरवइ गुणाइरेया इत्थिय भोगा सुहं संपलिया किंपागफलोवमं च मुणिय वीसय सोक्खं जल बुंवुय समाणं कुसग्ग जल बिन्दु चंचलं जीवियं चणाउणं अधुव मरि रय मीच पडगस्स विधुणित्ताणं चइत्ता हिरणं चइत्ता सुवणं जाव पव्वइया ॥ २१॥
( सूत्र उवाई।
उ० उत्तम भली जाति मातापक्ष. कु० कुल पितापक्ष. रू. शरीर नों थाकार. वि. नमन गुणरूप. पि० अनेक विज्ञान चतुराई पणो. ला० शरीर ना गौर वर्णादि प्राकार नी श्लाघा. वि० विक्रम पुरुषाकार प्रधान उत्तम छै. सो० सौभाग्य कं० कांति शरीर नी दीप्ति रूप तिणे करी युक्त सहित ब० बहु धन मणि रत्नादिक धान्य गोधूमादिक ना निश्चय कोठार परिवार दासी. एहनें. सब ने छोड़ी. न० नरपति राजा तेहना गुणथकी अतिरेक अधिक इ० स्त्री भोग सुख ने विषे अवलिस सर्व मानन्दा ने. कि० किम्पाक वृक्ष ना फल नो परे प्रथम अन्त्य दुःखप्रद जाण्या छै वि० विषय मुखां ने ज० जल बुदबुद नो परे कु० कुशाग्र भागस्थित जल बिन्दु नो परे चंवल. जी० जीवित्व में णा जाग्या छै. अ० अध्र व अनित्य वस्त्र नी रज झाट के जिम छांडी ने हिरण्य छांडी ने सुर्वर्ग यावत् प्रव्रज्या लीधी.
अथ इहां साधां रा गुणा में एहवा गुण कह्या। ते उत्तम जाति उत्तम कुल ना ऊपना कहा। पिण इम न कह्यो नीच कुल ना ऊपना उर्जन माली आदि देइ। ए अवगुण न कह्या । वलो कह्या जे साधु धर्म ध्यान रा ध्यावनहार. विषय सुख में किंपाक फल ( किरमाला ) सम जाणणहार. एहवा जे गुण हुन्ता ते कया। पिण इम न कयो, जे कोई आर्तरौद्र ध्यान ना ध्यावनहार. सीहादिक्क अगगार वलो केई निधागा रा करणहार. नव नियाणा रा करणहार. नव नियाणा किया. तेहवा साधु केई उपयोग ना चूकणहार, केई तामस ना आणणहार. एहवा अवगुण न कया। जे साधां में गुण हुंता ते षखाण्या। परं इम न जाणिये-जे वीर रा साधु रे कदेइ आर्तध्यान आवे इज नहीं. माठा परिणामे