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भ्रम विध्वंसमम् ।
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तथा वली उवाई प्रश्न २० श्रावका ना गुण कह्या । तिहां पहवा पाठ 3 ते लिखिये छै ।
से जे इमे गामागर नगर सन्निवेसेसु मनुसा भवंति तंजहा अप्पारंभा अप्प परिग्रहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मपलोइ धम्म पालज्जणा धम्म समुदायरा धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा सुसीला सुव्वया सुपडियाणंदा साहु ॥ ६४ ॥
(उवाई प्रश्न २०)
से० ते. जे० जो. गा० ग्राम आगार. नगर. यावत सन्निवेशाने विषे. म० मनुष्य. भ७ हुवे है. अ० अल्प आरंभवन्त अ० अल्प परिग्रहवन्त. ध० धर्मश्रुत चारित्र रूप ना करणहार. ध० धर्मश्रुत चारित्र रूप ने फेडे चाले छ. ध धर्मभ्रुत चारित्र रूप ने संभलावे ते धर्मख्यात कहीजे। ध० धर्मश्रुत चारित्र रूप ने ग्रहिवा योग्य जाणी वार २ तिहां दृष्टि प्रवर्तावे. ध० धर्मश्रुस चारित्र ने विषे प्रकर्षे सावधान छ अथवा धर्म ने रागे रंगाणा छ । प्रमाद रहित है, थाचार जेहनों. ध० धर्मश्रुत चारित्र ने अखंड पालवे श्रुत ने पाराधिज. वि० वृति आजीविका कल्पना करतां छतो. सु० सुष्टु भलो शील श्रावार है जेहनों. १० सुष्ठु भलौ ब्रत है जेहवो. सु० भले कर्त्तव्ये करी आनन्द रा माननहार. सा० श्रेष्ठ.
अथ अठे श्रावक ने धर्म ना करणहार कह्या , तो ते स्यूं अधर्म न करेंकांई । वाणिज्य व्यापार संग्राम आदिक अधर्म छै , ते अधर्म ना करणहार छ पिण ते श्रावकां रा गुण वर्णन में अवगुण किम कहे। जेतला गुण हुंता ते कहा छै। पिण अधर्म करे ते गुण नहीं। वली सुशील ते श्रावका नो भलो शील भाचार कह्यो। पिण ते कुशील सेवे ते सुशील पणो नहीं। ते माटे तेहनों कथन गुण में नहीं कियो। तिम भगवान् रे गुण वर्णन में लब्धि फोड़ी ते अवगुण नों वर्णन किम करे। डाहा हुये तो विचारि जोइजो ।
इति ४ बोल सम्पूर्ण।