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भ्रम विध्वंसनम् ।
कषाय कुसीले पुच्छा गोयमा ! सलेस्सा होजा खो अलेस्सा होजा जइ सलेस्सा होजा सेणं भं ते! कइ सुलेस्सासु होज्जा, गोयमा ! छसु लेस्सासु होज्जा
!
( भगवती श० २५ उ० ६ )
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कषाय कुशील नी पृच्छा हे गौतम! स० लेश्या सहित हुई. गो० नहीं अलेश्यावन्त हुई. ज० जो लेश्या सहित हुई तो से० ते. भगवन्त ! क० केतली लेश्या ने विषे हुइ गो० 'हे गौतम ! ६० ६ लेभ्या ने विषे हुइ' ।
अथ इहां कषाय कुशील नियंठा में छह ६ लेश्या भगवान् में ६ लेश्या हुवे तथा पन्नवणा पद ३६ तैजस लब्धि फोड्यां उत्कृष्टी पांच क्रिया कही । अनें हिंसा करे ते कृष्ण लेश्या ना लक्षण कह्या । उत्तराध्ययन अ० ३४ गा० २१ "पंचासव पञ्चता" इति वचनात् पञ्च आश्रव में प्रवर्त्ते ते कृष्ण लेश्या ना लक्षण कथा | अनें भगवान् तेजू शीतल लेश्या रूप लब्धि फोड़ी तिहां उत्कृष्टी ५ क्रिया कही । ते माटे ए कृष्ण लेश्या नों अंश जाणवो। कोई कहे कृष्ण लेश्या
कही छै
1 ते न्याय
लक्षण तो अत्यन्त खोटा छै । ते भगवान् में किम हुवे । तेहनों उत्तर - प्रथम गुण
ठाणे ६ लेश्या छै । तिहां शुक्ल लेश्या
छै । ते प्रथम गुण ठाणे किम पावे
ना तो लक्षण अत्यन्त निर्मल भला कह्या जिम मिथ्यात्वी में शुक्ल लेश्या नों अंश कही जे । तिम भगवान् में पिण कृष्ण लेश्या नों अंश कही जे । डाहा हुवे तो
।
विचारि जोइजो ।
इति १ बोल सम्पूर्ण ।
केतला एक कहे - साधु में ३ माठी लेश्या पावै इज नहीं ते पिण झूठ । भगवान् तो घणे ठामे साधु में ६ लेश्या कही छै। प्रथम तो भगवती श०
२५ उ० ६ कषाय कुशील नियंठे ६ लेश्या कही छै। तथा भगवती श० २५ ३०७