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भ्रम विश्वसनम् ।
___ अथ अठे पुद्गलास्तिकाय में ८ स्पर्श कहा। ते आठ स्पर्शी खंध आश्री कया। पिण सर्व पुद्गल परमाणु आदिक में ८ स्पर्श नहीं। तिम कषाय कुशील नियंठा में अपडिसेवो कह्यो ते विशिष्ट परिणाम ते वेलां आश्री कह्यो। तथा दीक्षा लेतां अथवा पुलाक वक्कुस पडिसेवणा तजी कषाय कुशोल में आवे ते वेलां भाश्री अपडिसेवी कह्यो जणाय छै। पिण सर्व कवाय कुशील अपडिसेवी जणाय नधी। जिन पुद्गलास्तिकाप ने अष्ट स्पों कया. अने सूक्ष्म अनन्त प्रदेशी खंध पुद्गलास्तिकाय में तो छ , पिण अष्ट स्पशी नहीं। तिम कषाय कुशील चारिलिया अपडिसेवो कह्या, ते अप्रमादी साधु आश्री जणाय छै। पिण सर्व कषाय कुशीलना धणी अपडिसेबी कह्या दीसै नहीं। इण न्याय कषाय कुशील नियंठा में अपडिसेवी कयो जणाय छै। तथा वली और किण ही न्याय सूं अपडिसेवी कह्यो हुस्यै ते पिण केवली जाणे । पिण कषाय कुशील पणो छांडि श्रावक पणो आदलो। पली वैक्रिय, आहारिक. तैजस. लब्धि फोड़े। वली १४ पूर्व धर ४ ज्ञानी में कषाय कुशील पावे ते पिण चूक जावे। इण न्याय कषाय कुशील नों धणी दोष लगावे छै । वलो गोतम पिण ४ ज्ञानी आनन्द ने घरे वचन में खलाया। त्यां ने पिण कषाय कुशील नियंठो हुन्तो। त्यां में १४ पूर्व ४ ज्ञान हुन्ता ते माटे । तिवारे कोई कहे --उपासक दशा सूत्र में गोतम में ४ ज्ञान १४ पूर्व नों पाठक कह्यो नथी। ते माटे आनन्द ने घरे वचन में खलाया। ते वेलां १४ पूर्व ४ ज्ञान न हुन्ता। पछे पाया छ। ते वेलां कवाय कुशील नियंठो पिण न हुन्तो। तिण सं वचन में खलाया इम कई तेहनों उत्तर। जे आनन्द ने श्रावक ना व्रत भादवां ने २० वर्ष थया। तेहने अन्तकाले सन्थारा में गौतम वचन में खलाया। अनें भगवन्त रा प्रथम शिष्य गौतम थया. ते माटे एतला वर्षा में गौतम १४ पूर्व धारी किम न थया। अने जे उपासक दशा में ४ ज्ञान १४ पूर्व नों पाठ गौतम रे गुणां में न कह्यो-इम कही लोकां ने भ्रम में पाड़े. तेहने इम कहिणो। १४ अङ्ग रच्या तिण में उपासक दशा नों सातमो अङ्ग छठो अङ्ग ज्ञाता नों अनें पांचमों अङ्ग भगवती छ। से भगवन्ते भगवती रची पछे ज्ञाता रची पछे उपाशक दशा रची छै। भगवती नी आदि में गोतम ना गुण कहा। तिहाँ एहयो पाठ छै। 'चोदसपुवी चउण्णाणो वगए" इहां १४ पूर्व अने ४ ज्ञान गोतम में कह्या। जे पञ्चमा अङ्ग में ४ ज्ञानी १४ पूर्व धारी गोतम ने कह्या , ते भगी सातमा अङ्ग में ४ ज्ञान १४ पूर्व