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प्रायश्चित्ताऽधिकारः।
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अथ इहां कषाय कुशीले में ३ तथा ४ तथा ५ शरीर कह्या। अनें पुलाक में ३ शरीर वक्कुस पड़िसेवणा कुशील में आहारिक बिना ४ शरीर पावै। अने कषाय कुशील में वैक्रिय आहारिक शरीर कह्या, तो वैक्रिय आहारिक लब्धि फोड्या दोष लागे छै। हिवै समुद्घात द्वार कहे छ।
.. कषाय कुसीलेणं पुच्छा. गो० ! छ समुग्घाया प० तं. वेदणा समुग्घाए जाव आहारग समुग्घाए.
__ (भगवती श० ०५ उ०६ )
क० कषाय कुशील नी पृच्छा. गो. हे गौतम ! छ० ६ समुद्रघात परूपी ते कहे छै. चेल भेदनी समुद्घात यावत् प्रा० श्राहारिक समुद्घात.
. अथ अठे कषाय कुशील में केवल समुद्घात वजी ६ समुद्घात कही। अनें पुलाक में ३ समुद्घात बेदनी १ कगाय २ मरणती ३ वक्कुस पडिलेवणा कुशील में आहारिक, केवल वजी ५ समुद्घात पावै । अत्र कषाय कुशील में ६ समुद्घात कही। ते भणी वैक्रिय तेजस आहारिक समुद्धात पिण ते करे छ। अनें पन्नवणा पद ३६ वैक्रिय तेजस आहारिक समुद्घात कियां जघन्य ३ क्रिया उत्कृष्टी ५ क्रिया कही छै। इणन्याय कषाय कुशील नियंठे उत्कृष्टी ५ क्रिया पिण लागे छै। ए तो मोटो दोष छै । तथा वली कषाय कुशील नियंठे आहारिक शरीर कह्यो। अनें भगवती श० १६ उ०.१ आहारिक शरीर करे ते अधिकरण कह्यो। प्रमाद नों सेविवो कह्यो। अधिकरण अने प्रमाद सेवे ते तो प्रत्यक्ष दोष छै। तथा वली कषाय कुशील नियंठे वैक्रिय शरीर कह्यो छै। अनें भगवती श ३ उ० ४ कहो। माथी वैक्रिय करे पिण अमायी वैक्रिय न करे। ते मायी बिना आलोयां मरे तो विराधक कह्यो। एहवो वैक्रिय नों मोटो दोष कह्यो। ते चैक्रिया दोष रूप कार्य कषाय कुशील में पाये छै। ते कषाय कुशील वैक्रिय तथा आहारिक करे छै। ए तो प्रत्यक्ष मोटा २ दोष कषाय कुशील में कया छ। तथा कपाय कुशोल नियंठे प्रत्यक्ष दोष लगावे है। ते पाठ लिखिये छै ।