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२१४.
- भ्रम विध्वंसनम्।
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कुशील नियंठो छै। वली १४ पूर्वधर ४ ज्ञानी पिण पतिक्रमणो करे । इणन्याय कषाय कुशील नियंठे अजाग तथा जाण ने पिण दोष लगावे छै। जे वैक्रिय तेजू आहारिक लब्धि फोड़े ते जाण में दोष लगावे छै। वली साधु पणो भांग ने श्रावक पणो आदरे ए जावक भ्रष्ट थयो, तो और दोष किम न लगावे । इणन्याय कषाय कुशील नियंठे दोष लगावे छै। तिवारे कोई कहे ए कषाय कुशील नियंठा में अपडिसेवी किणन्याय कह्यो। तेहनों उत्तर-ए कषाय कुशील नियंठा ने अपड़ि. सेवी कह्यो-ते अप्रमत्त तुल्य अपडिसेवी जणाय छै। कषाय कुशील नियंठा में गुणठाणा ५ छै। छठा थी दशमा ताई तिहां सातमें आठमें नवमें दशमें गुणठाणे भत्यन्त शुद्ध निर्मल चारित्र छै। ते अपडिलेवी छै। अने छठे गुणठाणे पिण अत्यन्त विशिष्ट निर्मल परिणाम नो धणी शुभ योग में प्रवर्ते छै। ते अडिसेवी छै। तथा दीक्षा लेतां अथवा पुलाक वक्कुश पडिसेवणा तजी कषाय कुशील में आवे तिण वेलां आश्री अअडिसेवी कह्यो जणाय छै। पिण सर्व कषाय कुशील रा धणी अपडिलेवी न दीसे । जिम कयाय कुशील में ज्ञान तो २ तथा ३ तथा ४ इम कह्या। शरीर पिण ३ तथा ४ तथा ५ इम कह्या। अनें लेश्या ६ वही छै। पिण इम नहीं कही १ तथा ३ तथा ६ एहवो न कह्यो । ए लेश्या ६ कही छै। ते छठा गुणठाणा री अपेक्षा इ पिण सर्व कषाय कुशील रा धणी में ६ लेश्या नहीं। ते किम् ७-८-६-१० गुणठाणा में कषाय कुशील नियंठो छ। तिहां ६ लेश्या नथो । कोई कहे ६ लेश्या रा पेटा में किहां १ पावै किहां ३ पावै, ते ६ लेश्या में आगई इम कहे। तिण रे लेखे शरीर पिणा पांच इज कहिणा। तीन तथा ४ कहवा रो काई काम । ३ तथा ४ शरीर पांच रा पेटा में समाय गया। वली ज्ञान पिण ४ कहिणा । २ तथा ३ कहिवा रो काई' काम । २ तथा ३ शान तो चार ज्ञान में समाय गया। इम लेश्या न कही समचे ६ लेश्या कही ए छठा गुणठाणा आश्री ६ लेश्या कहो। सर्व आनी कहिता तो १ तथा ३ तथा ६ इम कहिता पिण सर्व रो कथन इहां न लियो। तिम अपडिसेवी कह्यो। ते पिण अप्रमत्त आश्री तथा अप्रमत्त तुल्य विशिष्ट चारित्र रो धणी छठे गुण ठाणे शुभ योग में वर्ते ते आश्री अपडिसेवी कह्यो जणाय छै। ते ऊपर सूत्र नों हेतु भगवती श० १६ उ०६ पांच प्रकारे स्वप्न कह्या। वली भाव निद्रा नी अपेक्षाय जीवां ने सुत्ता, जागरा अने सुत्ता जागरा कहा । तिहां मनुष्य ने तिर्यश्च पंचेन्द्रिय टाल २२ दंडक तो सुत्ता कह्या । सर्वथा.