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प्रायश्चित्ताऽधिकारः ।
भ्रष्ट धई श्रावक थयो । ते पिण वक्कुस पणो छांडी संघमा संयम में आयो ।
पिण कषाय कुशील पणो छांडि सयमा संयम में न आयो ।' तथा वक्कुस पो छाडि पडिवणा में आवे १ कषाय कुशील में २ असंयम में ३ संयमासंयम में ४. ए चार ठिकाणे आवे कह्यो । पिण निर्ग्रन्थ स्नातक में आघता न कह्या । ते किम चक्कु पंछांड़ी निर्प्रन्थ स्नातक में आवे नहीं चढतो चढतो २ आवे वक्कुस पण छांडो पाधरो निर्ग्रन्थ न हुवे । बीचे कषाय कुशील फर्सी ने निर्मन्थ में आवे । ते मादे निर्ग्रन्थ में कषाय कुशील आवे पिण वक्कुस न आवे । ए तो पाधरो आवे इज नहीं कह्यो छै । ते न्याय कषाय कुशील पणो छांडि संयमासंयम भणी कषाय कुशील में प्रत्यक्ष दोष लागे छे । डाहा हुवे तो
में आवे कह्यो । विचारि जोइजो ।
इति १० बोल सम्पूर्ण ।
तथा वली पुलाक वक्कुस पड़िसेवणा में ४ ज्ञान १४ पूर्व मों भणवों वयों छै । अनेकवाय कुशील में ४ ज्ञान १४ पूर्व कह्या छै । अर्ने १४ पूर्वधारी पण वचन में चूकता कह्या छै । ते पाठ लिखिये छै ।
आयार पन्नति धरं काय विक्ख लियं नच्चा
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दिट्टिवाय महिज्जगं ।
न तं उवहसे मुणी ॥ ५० ॥
( दशवैका लिक ० ८गा० ५० )
० श्राचारांग प० भगवती सूत्र नों धरणहार ते भयणहार है. दि० दृष्टि धारमा अंग नों. स० भगणहार एहवा नं. ब० बोलता बचने करी. खलायो जाणो ने न० नहीं तेनें. इसे. मु० साधु,
अथ इहां कह्यो दृष्टि बाद से धणी पिण बचन में खलाय जाय तो और साधु ने हसणो नहीं । ए दृष्टि वाद रो जाण चूके. तिण में पिण कषाय