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भ्रम विध्वंसनम्।
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तथा वली केतला एक “कोलुण वड़ियाए” पाठ रो अर्थ विपरीत करे छै। ते कहे "कोलुण वडिया” कहितां कुतूहल निमित्ते नस जीव में बांधे छोड़े तो प्रायश्चित्त कह्यो। इस ऊँधो अर्थ करे ते शब्दार्थ ना अजाण छै । ए "कोलुण" शब्द नो अर्थ तो करुणा हुवे। पिण कुतूहल तो हुवे नहीं “कोउहल पड़ियाए" कह्यो हुवे तो “कुतूहल” हुवे । ते पाठ प्रते लिखिये छ ।
जे भिक्खू कोऊहल वडियाए अण्णयरं तसपाण जाति तण पासएणवा जाव सुत्त पासएणवा वंधति वंधंतंवा साइज्जइ ॥ १॥ जे भिक्खू कोऊहल वड़ियाए वंधेल्लयंवा मुयति मुयंतंवा साइज्जइ ॥ २॥
( निशीथ उ. १७ बो०१-२ ।
जे० जै कोई साधु साध्वी. को कुतूहल में निमित्त, अनेरो कोईक ब्रस प्राणी नी जाति ने. त० तृण ने. पा० पासे करी ने. जा० ज्यां लगे सूत्र ने पासे करी ने. वं० वांधे. वं० वांधता ने अनुमोदे. तो प्रायश्चित्त श्रावे ॥१॥ जे के कोई भ० साधु साध्वी. को कुतूहल निमित्ते वांध्या ने मूके छोडे. मूकता में अनुमोदे। तो पूर्ववत प्रायश्चित्त,
अथ अठे को-कुतूहल निमित्त लस जीव ने बांधे बांधता ने अनुमोदे तो दंसु-छोडे छोड़ता ने अनुमोदे तो दंछ कह्यो। इहां “कोऊहल” कहितां कुतूहल कहो. पिण “कोलुण" पाठ नहीं। अने १२ में उद्देश्ये “कोलुण" ते करुणा अनुकम्पा कही। पिण कोऊहल पाठ नहीं। ए विहूं पाठां में घणो फेर छै, ते विचारि जोईजो। जिम सत्तरह १७ में उद्देश्ये कुतूहल निमित्त त्रस जीवां ने बांधे छोडे वाधतां छोड़ता ने अनुमोद्यां प्रायश्चित्त कह्यो। तिम बारमें १२ उद्देश्ये करुणा अनुकम्पा निमित्त बांध्यां छोड्यां दंड-अनें बांधता छोड़ता ने अनुमोद्यां दंड कह्यो। जे कहे अनुकम्पा निमित्त साधु त्रस जीव में वांधे छोडे नहीं। अनें साधु बांधतो तथा छोड़तो हुवे तेहने अनुमोदनो नहीं। पिण गृहस्थ अनुकम्पा निमित्त त्रस जीव बांधे तथा छोड़े तेहने अनुमोद्यां प्रायश्चित्त नहीं ते गृहस्थ में अनुमोद्यां धर्म छै। ते माटे गृहस्थ में अनुमोदनो. इम कहे तो सतरमे १७ उद्देश्ये कह्यो । कुतूहल निमित्त साधु त्रस जीव में बांधे छोड़े नहीं ।