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भ्रम विध्वंसनम्।
तथा वली यक्षे छात्रां (ब्राह्मण विदयार्थियां ) ने ऊधा पाड्या ते पिण व्यावच कही है। ते पाठ लिखिये छ।
पुब्बिं च इरिहं च अण्णागय च,
मणप्पदोसो नमे अस्थि कोइ । जवाहु वेयाबडियं करेंति, लम्हा हु ए ए णिहया कुमारा ॥ ३२ ॥
( उत्तराध्ययन अ० १२ गा०३.)
पु० यक्ष अलगी थy हिवे यति बोल्यो पूर्व. इं. हिवड़ा. अ० अनागतकाले. म० मने करो. प० प्रदोष नथी. मे म्हारे. अ. छ. को कोई अल्पमात्र पिण. ज० यक्ष हु० निश्चय. वि० वैयावच पक्षपात का करे है. त० ते भणी. हु. निश्चय. ए० ए प्रत्यन निः निरंतर. णि. हण्या. कु० कुमार.
अथ अठे हरिकुशी मुनि कह्यो-ए छात्रों ने हण्या ते यक्षे व्यावच कीधी छै। पर म्हारो दोष तीन ही काल में न थी। इहां व्यावच कही ते सावध छै आज्ञा वाहिरे छ। अने हरिकेशी आदि मुनि ने अशनादिक दानरूप जे व्यावच ते निरवध छै । तिम अनुकम्पा पिण सावध निरवद्य है। अने जे कोई छात्रों ने ऊधा पाइया ए व्यावच में धर्म श्रद्धे, तिणरे लेने सूर्याभ नाटक पाड्यो, ए पिण भक्ति कही छै ते भक्ति में पिण धर्म कहिणो। अने ए सावध भक्ति में धर्म नहीं तो ए सावध व्यावच में पिण धर्म नहीं। कदाचित् कोई मतपक्षी थको सावदय नाटक रूप भक्ति में पिण धर्म कही देवे तेहने कहिणो-ए नाटक में धर्म हुवे तो भगवान् आज्ञा क्यूं न दीधी। जिम जमाली विहार करण री आज्ञा मांगी। तिवारे भगवान् आज्ञा न दीधी। ते हज पाठ नाटक में कह्यो । ते माटे नाटक नी पिण आज्ञा न दीधी तिवारे कोई कहे ए नाटक में पाप हुवे तो भगवान् वो क्यू नहीं। तिण ने कहियो जमाली ने विहार करतां वो क्यूं नहीं। यदि कोई कहे निश्चय विहार कर सी ज इसा भाव भगवान् देख लिया अने निरर्थक वाणी भग. वान् न बोले ते माटे न वज्र्यो । तो सूर्याभ ने पिण नाटक पाड़तो निश्चय जाण्यो. ते भणी निरर्थक वचन भगवान् किम बोले। ते माटे नाटक नी आज्ञा न दीधी ते