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अनुकंपाऽधिकार।
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नाटक रूप वचन ने आदर न दियो अने “नो परिजाण" कहितां मन में पिण भलो न जाण्यो । अनुमोदना पिण न कीधी । वली “मलयगिरि" कृत राय प्रश्रेणी री टीका में पिण "नो परिजाणाइ” ए पाठनों अर्थ भगवन्ले नाटक रूप वचन नी अनु: मोदना पिण न कीधी इस कह्यो छै । ते टीका लिखिये छ।।
"तएण मित्यादि-ततः श्रमणो भगवान् महावीरः सूर्याभेन देवेन एव मुक्तः सन् सूर्याभस्य देवस्य एव मनन्तरोदित मर्थ नाद्रियते. न तदर्थ करणायादर परो भवति. ना पि परिजानाति. नानुमन्यते स्वतो वीत रागत्वात्. गौतमादीनां च नाट्य विधिः स्वाध्यायादि विघात कारित्वात्. केवलं तूष्णी को 5 वति
प्ठते"
इहां टीको में पिण कयो नाटक नी अनुमोदना न कीधी । जो ए भक्ति में धर्म हुवे तो भगवान् अनुमोदना क्यूं न कीधी। आज्ञा क्यूं न दी थी। पिण ए सावदय भक्ति छै। ते माटे आज्ञा न दोधी अने वन्दना रूप निरवदय भक्ति नी आज्ञा दीधी छै। तिम अनुकम्पा पिण आज्ञा वाहिर छै ते सावदय छै अने आज्ञा माहि छै ते अनुकम्पा निरवदय छै। डाहा हुवे तो पिचारि जोइजो ।
इति ४२ बोल सम्पूर्ण।
वली केतला एक कहे-गोशाला ने भगवान् बचायो. ते अनुकम्पा कही छै ते मारे धर्म छै। तेहनों उत्तर-जो ए अनुकम्पा में धर्म छै तो अनुकम्पा तो घणे ठिकाणे कही छै। कृष्ण जी ईट उपाड़ी डोकरा रे घरे मूंकी ए डोकगनी अनुकम्पा कही छै। (१) हरिण गमेषी देवता देवकी रा पुत्रा ने चोरी सुलसारे घर मूक्या-ए पिण सुलसा री अनुकम्पा कही छै। (२) धारणी मनगमता अगनादिक खाधा ते गर्भ नी अनुकम्पा कही। (३) देवता अकाले मेह बरसायो ए अभयकुमार नी अनुकम्पा कही। (४) यक्षे विप्रां सूं बाद कियो तिहां हरिकेशी नी अनुकम्पा कही। (५) अनें भगवान् तेजु लब्धि फोड़ी गोशाला ने बचायो ते गोशाला नी अनुकम्पा कही छै। (६) जो ए पाछे कह्या ते अनु