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अनुकंपाऽधिकारः ।
जे भिक्खू अभिक्खणं २ पच्चक्खाणं भंजइ भजतंत्रा जे भिक्खू परित्तकाय संजुत्तं आहार
साइजइ ॥ ३ ॥ आहारे आहारतं वा साइज्जइ ॥ ४ ॥
(निशीथ १२ उ० ३-४ बोल )
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जे जे कोई साधु साध्वी. प्र० वारंवार प० नौकारसीयादिक पचखाण ने भ० भांजे भ० भांजता ने. सा० अनुमोदे ३, जे० जे कोई साधु साध्वी. प० प्रत्येक वनस्पतिकाय. सं० संयुक्त. ० अशनादिक ४ आहार. ग्रा० आहारे. आ० आहारताने सा० अनुमोदे। तो पूर्ववत् प्रायश्चित्त.
अथ अठे कह्यो । जे साधु पचखाण भांगे तो दंड अनें पचखाण भांगता अनुमोदे तो दंड कह्यो । 'तिरे लेखे साधु पचखाण भांगतो हुवे तिण नें अनुमोदनों नहीं । अनें गृहस्थ पचखाण भांगतो हुवे तिण में अनुमोद्यां दंड नहीं कहिणो । वली को प्रत्येक वनस्पति संयुक्त आहार भोगवे भोगवतां ने अनुमोदे तो दंड तो तिरे लेखे प्रत्येक वनस्पति संयुक्त आहार साधु करतो हुवे तिण अनुमाँ दंड-अनें गृहस्थ ते होज आहार करे तिण नें अनुमोद्यां दंड नहीं । जो गृहस्थ त्रस जीव बांध्या जीव छोड़े तिण नें अनुमोद्यां धर्म कहे. तो तिणरे लेखे गृहस्थ पचखाण भांगे ते पिण अनुमोद्यां धर्म कहिणो । वली गृहस्थ प्रत्येक वनस्पति संयुक्त आहार करे ते पिण अनुमोद्यां धर्म कहिणो । इण लेखे “निशीथ में एहवा अनेक पाठ का है । ते मूलो भोगवता नें अनुमोद्यां दंड. कुतूहल करता अनुमोद्यां दंड इत्यादिक घणा सावद्य कार्य अनुमोद्यां दंड कह्यो । तो तिण रे लेखे सर्व सावद्य कार्य साधु करे तो अनुमोदनों नहीं । अनें गृहस्थ मूलो खाय कुतूहल करे अनें सावद्य कार्य गृहस्थ करे ते अनुमोद्यां तिण रे लेखे धर्म कहिणो । अर्ने जो गृहस्थ पचखाण भांगे ते अनुमोद्यां धर्म नहीं । वनस्पति संयुक्त आहार करे ते आहारे अनुमोद्यां धर्म नहीं तो गृहस्थ अनुकम्पा निमित्ते तस जीव नें छोड़े तिण नें पिण अनुमोद्या धर्म नहीं कहिणो । ए तो सर्व बोल सरीखा है । जो एक बोल में धर्म थापे तो सर्व बोलां में धर्म थापणो पड़े। ए तो वीतराग नों न्यायमार्ग छै । सरल कपटाई रहित छै । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
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इति ३० बोल सम्पूर्ण ।