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अनुकंपाऽधिकारः।
न करें। तथा सौ १०० श्रावकां रे पेट ऊपर हाथ फेरी क्यूं न बचावे। पक्षी उदरादिक असंयती ने बचावणा तो श्रावका ने क्यं न बचावणा। जो असंयम जीवितव्य बांछयां धर्म हुवे तो साधु ने ओहीज उपाय सीखणी। डाकण साकण भूतादिक काढणा सर्पादिक ना ज़हर उतारणा। मंत्रादिक सीखणा इत्यादिक अनेक सावध कार्य करणा। त्यारे लेखे पिण ए धर्म नहीं ते भणी साधु ए सर्व कार्य न करे। निशीथ उ० १३ गृहस्थ नी रक्षा निमित्त भूती कर्म कियाँ प्रायश्चित कह्यो छै। ते भणी असंयती रो जीवणो बांछयां धर्म नहीं। ठाम २ सूत्र में असंयम जीवितव्य बांछणो वो छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति २६ बोल सम्पूर्ण ।
केतला एक कहे छ, अनुकम्पा सावद्य-निरवद्य किहां कही है। तथा अनुकम्पा कियां प्रायश्चित किहां कह्यो छ। ते ऊपर सूत्र न्याय कहे है।
जे भिक्खू ® कोलुण पडियाए अण्णयरियं तस पाण जायं तेण फासएणवा मुंजपासएणवा कटुपासएणवा चम्मपासएणवा. वेत्तपासएणवा. रज्जुपासएणवा. सुत्त. पासएणवा. बंधइ वंधतंवा साइजइ. ॥१॥ जे भिकरवू वंधेल्लयंवा मुयइ मुयंतंवा साइज्जइ ॥ २ ॥
(निशीथ उ० १२ वो०१-२) ज. जे कोई. भि० साधु साध्वी. को अनुकम्पा. १० निमितं . अ० अनेरोई. त० बस प्राणि जातिधे इन्द्रियादिक नें. त० डाभादिक नी डोरी करो. क० लकड़ादिक नो डोरी करी.
* कई एक अज्ञातो पुरुष अर्थ के मर्मको न समझते हुए इस "कोलुण" शब्द का अर्थ "दोन भाव" करते हैं। उन दिवान्ध पुरुषों के अभिज्ञान के लिये "कोलुण" शब्दका "अनुकम्पा" अर्थ बतलानेवाली श्री "जिनदास" गणिकृत "लघु चूर्णी" लिखी जाती है। "भिक्ख पुग्ध भणिउ कोलणंति-कारुण्यं अनुकम्पा प्रतिज्ञया इत्यर्थः । सन्तीति वसाः ते च सेजोवायु द्वीन्द्रियादयश्च प्राणिनस्त्रसाः। एत्थ तेश्रो वाहि णाहिकारो जाइ गहणश्रो विसिम गोजाई" इति । “संशोधक'