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भ्रम विध्यसनम् ।
ते तांहरी. णा नावाने विषे. उ० उदक. उछिद्रे करी. आ० अावे दै. उ० उपरे २ घणो २
आवते. णा नावाक. भराइंछै. ए. ए तथा प्रकार ए भाव सहित. म० मन तथा वा० वचन एहवा. णो० नहीं. पु० पागल करी. वि० विहरे नहीं. एतावता मन माहि एहवो भाव न चिन्तवै. जो ए गृहस्थ ने पायो सातो नावा कहूं प्रथश वचने करी को नहीं जो ए नावा तांहरी पाणी ई भरिये छै. एहयों न आहे. किन्तु. अ. अविमनस्क एतले स्यूं भाव शरीर उपकरण ने विषे ममता श्रण करतो. तथा अ० संपम थको जेह नी लेश्या बाहिर नथी निकलती, एतावता संयम में वर्ते. एकान्त गरा राग रहित. प्रा० अात्मा करवो इण परे. समाधि सहित. त० तिवारे, साध, गा० नावाने विष रोयको शुभ अनुष्ठान में विपं प्रवत्त ।
अथ अठे हो -- जे पाणी नाया में आवे धणा मनुष्य नावा में डुवता देखे तो पिज साधु में मन वचन करी पिण बतावणो नहीं। जे असंयती रो जीवणो बांछयां धर्म हुवे तो नावा में पाणी आवतो देखी साधु क्यों न बतावे । केतला एक करे -जे लाय लाग्यां ते घर रा किमाड़ उगाडणा तथा गाड़ा हेठे बालक आवे तो साधु ने उठाय लेणो, इम कहे। तेहनो उत्तर–जो लाय लाग्यो ढाढा बाहिरे काढणा तो नावा में पाणी आवे ते क्यूं न बतावणो। इहां तो श्रीं घीतराग देव चौड़े वो छै। जे पाणी में डूबतो देखी न वचावणो। तो अग्नि थकी किम बचावणी। इम असंयती रो जीवणो बांच्या धर्म हुवे, तो नमी ऋषि नगरी वलती देखी ने साहमो क्यूं न जोयो। तथा समुद्र पाली चोर ने मारतों देखी क्यू न छोड़ायो। तथा १०० श्रावकां रो पेट दुखे साधु हाथ फेरे तो सौ १०० बचे। तो हाथ क्यूं न फेरे, तथा लटां गजायां कातरादिक ढांढा रा पग हेठे भरता देखी लाधु क्यूं न वचावे। जो मिनकी ने नशाय उदरा ने बचाये तो सौ १०० श्रावका में तथा लटां गजायां आदि ने क्यूं न बचावे. तथा दशवैकालिक अ० ७ गा० ५१ कधो. ए जीव नों उपद्रव मिटे इसी बांछा पिण न करवी. तों उदरादिक नों उपद्रव किम मेटणो। तथा दशवकालिक अ०७ गा० ५० कह्यो देवता मनुष्य तिसंच माहो माही लड़े तो हार जीत बांछणी नथी। तो मिनकी नी हार उदरानी जीत किम वांछणी। वलो किन हार जीत तेहनी हाथां तूं करणी। तथा केई कहे-पक्षी माला ( घोंसला ) थी साधु रे को आय पडयो तो तेहनें बवावग में पाछो माला में साधु ने मेलणो, इम कहे नेहनो उत्तर-जो पक्षी ने बचावणो तो तपरवी श्रावक साधु रे स्थानक कायोत्सन ( ध्यान ) में तांगी (मृगी) थी हेठो पझ्यो गावड़ी ( गर्दन ) भांगती देखी साधु ते शावक में बैठो क्यों