________________
भ्रम विध्वंसनम् ।
Pancomc
m
पणा बोल कह्या छ। सचित आंबो चूंसे, सचित्त आंबो भोगवे, भोगवता ने अनुमोदे, तो साधु ने दंड कयो। जो सचित्त आंबा भोगवतां ने अनुमोदे ते साधु ने दण्ड आवे तो जे गृहस्थ सचित्त आंबो भोगवे तो तेहने धर्म किम हुवे । तिम गृहस्थ ने दान देवे तेहनें साधु अनुमोदे तो दंड आवे तो जे गृहस्थ में देवे तिण ने धर्म किम हुवे। इण न्याय पडिमाधारी गृहस्थ तेहनों दान अनुमोद्यार दंड आवे तो देण वाला ने धर्म किम हुवे। डाहा हुवे तो विद्यारि जोइजो ।
इति ३५ बोल सम्पूर्ण।
तथा वली गृहस्थ नी ब्यावच करे, करावे, अनुमोदे तो अनाचार कह्यो । ते पाठ लिखिये छै।
गिहिणो वेया वडियं जाइ आजीव वत्तिया । तत्ता निवुड भोइत्तं आउरस्स रणाणिय ॥६॥
( दशवकालिक अ० ३ गा०६)
गि गृहस्थ नी. वे वैयावचनों करिवो ते अनाचीर्ण. जा० जाति. श्रा० श्राजीविका पेट भराई ने. व अर्थे पोतामी जाति जणावी में आहार लेवे ते अनाचीण. त° उन्हों पाणी अग्नि नो शस्त्र पूरो प्रणम्यो नथी. एहवा पाणी नों भोगविवो ते मिश्र पाणी भोगवे तो अणाचार. प्रा.रोगादिके पीड्यो थको. सास्वजनादिक ने संभारे ते प्रणाचार.
अथ अठे कह्यो-गृहस्थ नी व्यावच कियां करायाँ अनुमोद्या. अठावीसमो अणाचार कह्यो। जे अशनादिक देवे ते पिण व्यावच कही छै। अनें गृहस्थ में पडिमाधारी पिण आयो। तेहनें पिण गृहस्थ कह्यो छै। तिण सं तिण में अशनादिक दियां दिरायां अनुमोद्यां अणाचार लागे ते अणाचार में धर्म किम कहिये। तिवारे कोई कहे ए अणाचार तो साधु ने कह्यो छै। पिण गृहस्थ में धर्म छै । तेहनो उत्तर--बावन ५२ अनाचार में मूलो भोगवे ते पिण अनाचार कह्यो। आदो भोगवे सो अनाचार कह्यो। छव ६ प्रकार रा सचित्त लूण भोगविया अणाचार । काजल