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अनुकंपाऽधिकार |
जे भिक्खू परं विभावेइ विभावतंत्रा साइज्जइ ।
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(निशीथ उ० ११ बो० १७० )
जे० जे कोइ साधु साध्वी अनेरा ने इहलोक मनुष्य में भय करी परलोक ते तिर्यञ्चादिक में भय करी ने वि० बीहावे. वि० वीहावता नें. सा० अनुमोदे इहां भय उपजावतां दोष उपजे. विहावतो थको अनेरा नें भूत जीव नें हणे. तिवारे छही काय नी विराधना करे इत्यादिक दोष उपजे. तो पूर्व वत्प्रायश्चित्त ।
अथ अठे पर जीव नें विहाव्यां विहावतां नें अनुमोद्यां चौमासी प्रायश्चित कह्यो। तो मिनकी में डराय ने उन्दरा में पोषणो किहां थी । अनें असंयती ना शरीर नो रक्षा किन करणी । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति २६ बोल सम्पूर्ण ।
तथा गृहस्थ नी रक्षा निमित्ते मंत्रादिक किया प्रायश्चित कयों । ते पाठ लिखिये छै ।
जे भिक्खू अणउत्थियंवा गारत्थियंवा भुइ कम्मं करेइ करतंवा साइज्जइ ।
(निशीथ उ० १३ बो० १४ )
जे जे कोई साधु साध्वी अन्य तीर्थी ने गा० गृहस्थ में भू० रज्ञा निमिते भूत कर्म क्रियाइ' करी मंत्री ने भूती कर्म करे. भूती कर्म करतां ने. सा० साधु अनुमोदे तो पूर्वव
प्रायश्चित्त.
The hate
अथ अठे गृहस्थ नी रक्षा निमित्त मंत्रादिक कियां अनुमोद्यां चौमासी प्रायश्चित कह्यो । तो जे ऊदरादिक नी रक्षा साधु क्रिम करे। अनें जो इम रक्षा कियां धर्म हुवे तो डाकिनी शाकिनी भूतादिक काढ़ना सर्वादिक ना ज़हर उतारना