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दानाऽधिकारः ।
कस्स समणोवस्सए अत्थमाणस्स आया अहिगरणी भवइ आयाहि गरण वत्तियं च णं तस्स नो ईरिया वहिया किरिया कज्जइ संपराइया किरिया कज्जइ संपराइया किरिया कजइ सेते. ॥४॥
(भगवती श० ७ उ० १ )
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जे उपाश्रय
सः श्रमणोपासक ने भ० हे भगवन्त ! सामायक कीधे छते. स० श्रमण तेहविषे
बैठो है तर ते श्रमणोपासक ने भ० भगवन्त ? किस्यूं. इ० इरियावहिकी क्रिया हुई. अथवा संपरायकी क्रिया हुई निरूद्व कषायपणा थी ए श्राशंकाई प्रश्न हे गौतम ? गो० इरियावहिकी क्रिया न उपजे. सं० संपरायकी उपजे से० ते केह अर्थे यावत संपराय क्रिया हुई. गौतम ? स० श्रमणोपासक ने सामायक कीधे छतै स० श्रमण साधु तेहने उपाश्रय नें विषे. ० रहते छते. श्रा० श्रात्माजीव श्रा० अधिकरण ते हल शकटादिक ते कवाय मा श्राश्रय भूत है. श्र० श्रात्मा अधिकरण ने विषे वत्ते है ते माटे तेहने गो० इरियावहिकी क्रिया न उपजे. सं० संपराइ क्रिया उपजे से० ते माटे ।
अथ इहाँ पिण सामायक में श्रावक री आत्मा अधिकरण कही छै 1 अधिकरण ते छव ६ काय रो शस्त्र जाणवो । ते माटे सामायक पोषा में तेहनी काया शस्त्र छै 1 शस्त्र तीखो कियाँ धर्म नहीं । वली ठाणाङ्ग ठाणे १० अनत ने भाव शस्त्र को छै । ते सामयिक में पिण वस्त्र गेहणा पूंजणी आदिक उपकरण काया सर्व अव्रत में छै । तेहना यत्न कियाँ धर्म नहीं ।
तिबारे कोई कहै सामायक में पूंजणी राखे तेहनो धर्म छे । दया रे अ पूंजणी राखे छे । तेहनो उत्तर-ए पूंजणी आदिक सामायक में राखे ते अव्रत में है। ए तो सामायिक में शरीर नी रक्षा निमित्त पूंजणी आदिक उपधि राखे छै I ते पिग आप रो कचाई छै परं धर्म नहीं । वे किम-जे पूंजणो आदिक न राखे तो काया स्थिर राखणी पड़े। अनें काया स्थिर राखणे री शक्ति नहीं । माछरादिक ना फर्स खमणी आवे नहीं । ते माटे पूंजणी आदिक राखे । माछरादिक पूंजी खाज खणे । ए तो शरीर नी रक्षा निमित्ते पूंजे, पिण धर्म हेतु नहीं । कोई कहै दया रे अर्थे पूंजे ते मिले नहीं । जो पूंजणी बिना दया न पले, तो अढ़ाई द्वीप वारे असंख्याता तिर्यञ्च श्रावक छै । सामायकादिक व्रत पाले छै । त्यार तो पूंजणी दीसे
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