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भ्रम विध्वंसनम्।
न हणे । ते भणी पोता नो अनुकम्पा कही छै अने आप में पाप लगायने आगलानी अनुकम्पा करे ते सावध छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति २२ बोल सम्पूर्ण।
तथा उत्तराध्ययन अ० २१ समुद्र पाली पिण चोर में मारतो देखी छोडायो, चाल्यो नहीं ! ते पाट लिखिये है।
तं पासिऊण संबेगं समुदपालो इणमव्बबी अहो असुभाण कम्माणं निजाणं पावगंइमम्
(उत्तराध्ययन अ०२१ गाह)
सं० ते चोर ने. पा० देखी ने. सं० वैराग्य ऊपनों. स. समुद्र पाल. इ० इम. म० बोल्यो. भा० आश्चर्यकारी. अ० अशुभ. कर्म नों. नि० छेहड़े श० अशुभ विपाक इ० ए प्रत्यक्ष.
अथ इहां पिण बह्यो-समुद्रपाली चोर ने मारतो देखी वैराग्य आणी चारित्र लीधो पिण गर्थ देइ छोडायो नहीं। परिग्रह तो पाचमों पाप को छै । जे परिग्रह देह जीव छुड़ायां धर्म हुवे तो बाकी चार भाव सेवाय नै जीव छोड़ायां पिण धर्म कहिणो। पिण इम धर्म निपजे नहीं। असंयम जीवितन्य बांछे ते तो मोह अनुकम्पा छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति २३ बोल सम्पूर्ण।
तथा गृहस्य रस्तो भूलो दुखी छै। तेहने मार्ग बतावणो नहीं । गृहस्थ रस्तो भूला में मार्ग बतायां साधु ने प्रायश्चित कह्यो । ते पाठ लिखिये है।. ..