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अनुकंपाऽधिकारः ।
णाम किञ्चित् चलाया नहीं । जिन आचारांग ध्रु० २ अ० ३ उ० १ नाव में बैठा नावा में पाणी आवतो देखी मन वचने करी पण बतावो नहीं । राग द्वेष पणे रहित आत्मा करियो । तिहां पिण "आहारिय रियेा " एहको पाठ कह्यो छे । तेहनों अर्थ शोलाङ्काचार्य कृत टीका में इम को छे । ते टीका लिखिये छै ।
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कह्यो जे
गृहस्थ में
हारियमिति यथेये भवति तथा गच्छेत् । विशिष्टाव्यवसाय यानादित्यर्थः ।
अथ इहां टीका में पण इस को । विशिष्ट अध्यवसाय ने विषे प्रवर्त्तत्रो । तिम इहां पिण “आहारियं रियेजा" पहनो अर्थ शुभ अव्यवसाय में विषे प्रवर्त्ते । तथा स्थिर भाव में विषे रहे एहवूं जणाय छे। पिण वध परिग्रह माहि थी उठे नहीं । जे पडिमाधारी तो हाथी सिंहादिक साहमा आवे तो पण टले नहीं। तो
हि मांहि थी किन उठे । तिवारे कोई करें - परिवह थी डरता न उठे । परं दया अनुकम्पा ने अर्थ बाहिरे निकले । इम कहे तेहने इम कहिणो, ए तो साम्प्रत अयुक्त छै I जे पड़िमाधारी किण हीनें संथारो पिण पचखावे नहीं. कोई नें दीक्षा पिण देवे नहीं । श्रावक ना व्रत अदरात्रे नहीं, उपदेश देवे नहीं, चार भाषा उपरान्त बोले नहीं - तो ए कान किन करे। अने जो दवा में अर्थ उठे तो दया ने अर्थ उपदेश पिण देणो । दीक्षा पिण देणी । हिंसा. सूठ, चोरी. रा त्याग for कराणा । इत्यादिक और कार्य पिण करणा । पिय पंडिताधारी धर्म उपदेशादिक कांई न देये । एतो एकान्त आप रो इज उद्धार करवा ने उठा छै । ते पोते किनही जीव नें हजे नहीं । एतो आपरीज अनुकम्श करे । पिण परती न करें । जिम ठाणाङ्ग ठागे ४ उ०४ कह्यो । “आयाणुपए नाम मेगे णो पराणु कंप" आत्मानीज अनुकम्पा करे पिण परनी न करे ते जिनकल्पी आदिक । इहां पण जिन कल्पो आदिक को । ते आदिक शब्द में तो पड़िमाधारी पिण
या ते आप री इज अनुषा करे। पिण परनी न करे, ते जीव नें न हणे ते आपरीज अनुकम्पा छे । ते किम-जे एहनें मायां मोनें पाप लागलो तो हूं डूबसूं । इम आप री अनुकम्पा ने अर्थे जीव हणे नहीं । जो जीव नें हणे तो पोतानीज अनुकम्पा उठे छे - आप डूबे ते माटे । अ अग्नि मांहि थी व विकले अतें कोई वले . तो आप नें पाप लागे नहीं । ते माडे पड़िताधारी परिषह मांहि थी निकले नहीं
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रहे। अजे सिद्धान्त ना अजाण झूठा अर्थ चाय में पड़िमाघारी में